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________________ श्रमण-धर्म नहीं है, फिर भी जैन- परम्परा में उन शीलों का पालन जितनी निष्ठा और कठोरतापूर्वक किया गया, उतना बौद्ध परम्परा में नहीं। यही कारण है कि बौद्ध श्रमण-संस्था परवर्तीकाल में काफी विकृत हो गई। - पंच यम और पंच महाव्रत जैन-प - परम्परा के पंच महाव्रत के समान ही वैदिक परम्परा में पंच यम स्वीकार किए गए हैं। पातंजल योगसूत्र में निम्न पंच यम माने गए हैं- 1. अहिंसा, 2. सत्य, 3. अस्तेय, 4. ब्रह्मचर्य और 5. अपरिग्रह ।" इन्हें महाव्रत भी कहा गया है। पातंजल योगसूत्र के अनुसार, जो जाति, देश, काल और समय की सीमा से रहित हैं तथा सभी अवस्थाओं - 383 पालन करने योग्य हैं, वे महाव्रत हैं। महाव्रतों का पालन सभी के द्वारा निरपेक्ष रूप से किया जाना चाहिए। वेदव्यास का कथन है कि निष्काम योगी अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का सेवन करे। वैदिक परम्परा के अनुसार, संन्यासी को पूर्णरूप से अहिंसामहाव्रत का पालन करना चाहिए। संन्यासी के लिए त्रस और स्थावर - दोनों प्रकार की हिंसा निषिद्ध है ।" इसी प्रकार, संन्यासी के लिए असत्य भाषण और कटु भाषण भी वर्जित हैं। 98 वैदिक परम्परा में संन्यासी के आचार का जो विधान है, उसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की दृष्टि से कोई मौलिक मतभेद नहीं है। वैदिक परम्परा के अनुसार भी संन्यासी को ब्रह्मचर्य - महाव्रत का पूर्ण रूप से पालन करना चाहिए। वैदिकपरम्परा में स्वीकृत मैथुन के आठों अंगों का सेवन उसके लिए वर्जित माना गया है। परिग्रह की दृष्टि से भी वैदिक परम्परा भिक्षु लिए जलपात्र, पवित्र (जल छानने का वस्त्र), पादुका, आसन एवं कन्था आदि सीमित वस्तुएँ रखने की अनुमति देती है। " वायुपुराण में उन सब वस्तुओं के नाम हैं, जिन्हें संन्यासी अपने पास रख सकता है। 100 वैदिक परम्परा में भी संन्यासी धातुपात्र का प्रयोग निषिद्ध है । मनुस्मृति के अनुसार, संन्यासी का भिक्षापात्र तथा जलपात्र मिट्टी, लकड़ी, तुम्बी या बिना छिद्रवाले बांस का होना चाहिए। 101 जहाँ तक अहिंसा - महाव्रत का प्रश्न है, जैन और वैदिक-दोनों ही परम्पराएँ त्रस और स्थावर की हिंसा को निषिद्ध मानती हैं, फिर भी वैदिक परम्परा में जल, अग्नि, वायु आदि में जीवन का अभाव माना गया है और इसलिए उनकी हिंसा से बचने का कोई निर्देश वैदिक-परम्परा में उपलब्ध नहीं है। वैदिक-परम्परा में स्थूल और सूक्ष्म त्रस प्राणियों एवं वनस्पति आदि जंगम या स्थावर की हिंसा का ही निषेध है । सत्य- महाव्रत के संदर्भ में वैदिक परम्परा में भी काफी गहराई से विचार किया गया है। वैदिक परम्परा में प्रिय सत्य Jain Education International - बोलने का विधान है। अप्रिय सत्य का बोलना निषिद्ध ही है। महाभारत के अनुसार, सत्य बोलना अच्छा है, परन्तु सत्य भी ऐसा बोलना अधिक अच्छा है, जिससे सब प्राणियों का For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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