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सामाजिक-धर्म एवं दायित्व
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करते, तो कौन है, जो तुम्हारी परिचर्या करेगा ? जो मेरी परिचर्या करता है, उसे रोगी की परिचर्या करना चाहिए। बुद्ध का यह कथन महावीर के इस कथन के समान ही है कि रोगी की परिचर्या करने वाला ही सच्चे अर्थों में मेरी सेवा करने वाला है। बुद्ध की दृष्टि में जो व्यक्ति अपने माता, पिता, पत्नी एवं बहन आदि को पीड़ा पहुँचाता है, उनकी सेवा नहीं करता है, वह वस्तुतः अधम ही है (सुत्तनिपात 7/9-10)। सुत्तनिपात के पराभवसुत्त में कुछ ऐसे कारण वर्णित हैं, जिनसे व्यक्ति का पतन होता है, उन कारणों में से कुछ सामाजिक-जीवन से सम्बन्धित हैं, हम यहाँ उन्हीं की चर्चा करेंगे- 1. जो समर्थ होने पर भी दुबले और बूढ़े माता-पिता का पोषण नहीं करता, 2. जो पुरुष अकेला ही स्वादिष्ट भोजन करता है, 3. जो जाति, धर्म तथा गोत्र का गर्व करता है और अपने बन्धुओं का अपमान करता है, 4. जो अपनी स्त्री से असन्तुष्ट हो वेश्याओं तथा परस्त्रियों के साथ रहता है, 5. जो लालची और सम्पत्ति को बरबाद करने वाले किसी स्त्री या पुरुष को मुख्य स्थान पर नियुक्त करता है-ये सभी बातें मनुष्य के पतन का कारण हैं (सुत्तनिपात 6/1, 12, 14, 18, 22)। इस प्रकार, बुद्ध ने सामाजिक-जीवन को बड़ा महत्व दिया है। बौद्ध-धर्म में सामाजिक-दायित्व
__ भगवान् बुद्ध पारिवारिक एवं सामाजिक-जीवन में गृहस्थ-उपासक के कर्तव्यों का निर्देश करते हुए दीघनिकाय के सिगालोवाद-सुत्त में कहते हैं कि गृहपति को मातापिता आचार्य, स्त्री, पुत्र, मित्र, दास (कर्मकर) और श्रमण-ब्राह्मण का प्रत्युपस्थान (सेवा) करना चाहिए। उपर्युक्त सुत में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि इनमें से प्रत्येक के प्रति गृहस्थोपासक के क्या कर्त्तव्य हैं।18
पुत्र के माता-पिता के प्रति कर्त्तव्य-(1) इन्होंने मेरा भरण-पोषण किया है, अतः मुझे इनका भरण-पोषण करना चाहिए। (2) इन्होंने मेरा कार्य (सेवा) किया है, अतः मुझे इनका कार्य (सेवा) करना चाहिए। (3) इन्होंने कुल-वंश को कायम रखा है, उसकी रक्षा की है, अतः मुझे भी कुल-वंश को कायम रखना चाहिए, उसकी रक्षा करनी चाहिए। (4) इन्होंने मुझे उत्तराधिकार (दायज) प्रदान किया है, अतः मुझे भी उत्तराधिकार (दायज्ज) प्रतिपादन करना चाहिए (5) मृत-प्रेतों के निमित्त श्राद्धदान देना चाहिए।
माता-पिता का पुत्र पर प्रत्युपकार – (1) पाप-कार्यों से बचाते हैं। (2) पुण्य-कर्म में योजित करते हैं। (3) शिल्प की शिक्षा प्रदान करते हैं। (4) योग्य स्त्री से विवाह कराते हैं और (5) उत्तराधिकार प्रदान करते हैं।
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