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सामाजिक नैतिकता के केन्द्रीय-तत्त्व : अहिंसा, अनाग्रह और अपरिग्रह
49. देखिए - दर्शन और चिन्तन, खण्ड 2, पृ. 416 50. सूत्रकृतांग, 2/6/35
51. तट दो प्रवाह एक, पृ. 40
52. दर्शन और चिन्तन, पृ. 410-411.
53. 'वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति', 54. अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड 7, पृ 1229.
55. भारतीय दर्शन (दत्त एवं चटर्जी), पृ. 43 पर उद्धृत.
56. दर्शन और चिन्तन, खण्ड 2, पृ. 415.
57. अभिधान राजेन्द्रकोश, खण्ड 7, पृ. 1229.
58. आचारांग, 2/15/658.
59. वही, 1/4/1/27.
60. आचारांग, द्वितीय श्रुतस्कंध, अ. 15/179 मूल एवं टीका
61. दर्शन और चिन्तन, खण्ड 2, पृ. 60.
62. सूत्रकृतांग, 2/6/53-54.
63. भगवतीसूत्र, 7/8/102
64. वही, 9 / 34 / 106.
65. वही, 9 / 34 / 107.
66. लोकतत्त्व निर्णय 1 / 37, 38.
67. सयं सयं पसंसंता गरहंता परं वयं ।
जे उ तत्थ विउस्सन्ति संसारे ते विउस्सिया ॥ सूत्रकृतांग 1/1/2/23. 68. आचारांगचूर्णि, 1/7/1
69. थेरगाथा, 1/106.
70. उदान, 6/4.
71.
सुत्तनिपात 50/16-17.
72. सुत्तनिपात 51 / 2, 3, 10, 11, 16-20.
73. वही, 46/8-9.
74. गीता, 16-10
75. वही, 17 / 19, 18/35.
76. विवेकचूड़ामणि,
60.
77. वही, 62.
78. विवेकचूड़ामणि 61.
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