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________________ भारतीय आचार- दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन भी जब यह कहती है कि कर्म-संन्यास से कर्मयोगी श्रेष्ठ है, तो उसका यही तात्पर्य है कि संन्यास की अपेक्षा गृहस्थ जीवन में रहते हुए जो नैतिक- पूर्णता प्राप्त की जाती है, वह विशेष महत्वपूर्ण है,' लेकिन उसका अर्थ यह भी नहीं है कि गृहस्थ-जीवन संन्यासमार्ग की अपेक्षा श्रेष्ठ है। यदि दो मार्ग एक ही लक्ष्य की ओर जाते हों, लेकिन उनमें से एक बाधाओं में पूर्ण हो, लम्बा हो और दूसरा मार्ग निरापद हो, कम लम्बा हो, तो कोई भी पहले मार्ग को श्रेष्ठ नहीं कहेगा । श्रेष्ठ मार्ग तो दूसरा ही कहलाएगा। हाँ, बाधाओं से परिपूर्ण मार्ग से होकर जो साधक लक्ष्य तक पहुँचता है, वह अवश्य ही विशेष योग्य कहा जाएगा। 10 जैन और बौद्ध आचार-दर्शन यद्यपि संन्यासमार्ग पर अधिक जोर देते हैं और इस अर्थ में निवृत्यात्मक ही हैं, तथापि इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि गृहस्थ-जीवन में रहकर नैतिक-साधना की पूर्णता को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसका तात्पर्य इतना ही है कि संन्यासमार्ग के द्वारा नैतिक-साधना या आध्यात्मिक-समत्व की उपलब्धि करना अधिक सुलभ है। 152 क्या संन्यास पलायन है ? - जो लोग निवृत्तिमार्ग या संन्यासमार्ग को पलायनवादिता कहते हैं, वे भी किसी अर्थ में ठीक हैं। संन्यास इस अर्थ में पलायन है कि वह हमें उस सुरक्षित स्थान की ओर भाग जाने को कहता है, जिसमें रहकर नैतिक-विकास सुलभ होता है। वह नैतिक-विकास या आध्यात्मिक-समत्व की उपलब्धि के मार्ग में वासनाओं के मध्य रहकर उनसे संघर्ष करने की बात नहीं कहता, वरन् वासनाओं के क्षेत्र से बच निकलने की बात कहता है। संन्यासमार्ग में साधक वासनाओं के मध्य रहते हुए उनसे ऊपर नहीं उठता, वरन् वह उनसे बचने का ही प्रयास करता है। वह उन सब प्रसंगों से, जहाँ इस आध्यात्मिक समत्व या नैतिक जीवन से विचलन की सम्भावनाओं का भय होता है, दूर रहने का ही प्रयास करता है । वह वासनाओं से संघर्ष का पथ नहीं चुनता, वरन् वासनाओं से निरापद मार्ग को ही चुनता है । वह वासनाओं से संघर्ष के अवसरों को कम करने का प्रयास करता है । वह संघर्ष के प्रसंगों से दूर रहना या बचना चाहता है। इन सब अर्थों में निश्चय ही संन्यासमार्ग पलायन है, लेकिन ऐसी पलायनवादिता अनुचित तो नहीं कही जा सकती है। क्या निरापद मार्ग चुनना अनुचित है ? क्या पतन के भय से बचने का प्रयास करना अनुचित है ? क्या उन संघर्षों के अवसरों को, जिनमें पतन की सम्भावना हो, टालना अनुचित है ? संन्यास पलायन तो है, लेकिन वह अनुचित नहीं है; वरन् मानवीय बुद्धि का ही परिचायक है। समत्व के भंग होने के अवसर या राग-द्वेष के प्रसंग गृहस्थ जीवन में अधिक होते हैं और यदि कोई साधक उस अवस्था में समत्व - दृष्टि रख पाने में अपने को असमर्थ पाता है, तो उसके लिए यही उचित है कि वह संन्यास के सुरक्षित क्षेत्र में ही विचरण करे। जैसे चोरों से धन की सुरक्षा के लिए व्यक्ति के सामने दो विकल्प हो सकते हैं - एक तो यह कि व्यक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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