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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
राग और द्वेष वासना या तृष्णा की ही आकर्षणात्मक और विकर्षणात्मक-शक्तियाँ हैं। गीताकार का स्पष्ट मत है कि काम से ही क्रोध उत्पन्न होता है। तृष्णा की इन आकर्षणात्मक
और विकर्षणात्मक-शक्तियों को जैन-दर्शन में राग और द्वेष कहा गया है। बौद्ध-दर्शन में राग और द्वेष के साथ-साथ इनके लिए अधिक समुचित पर्याय है- भवतृष्णा और विभवतृष्णा। आधुनिक-मनोविज्ञान में फ्रायडने इन्हें ही जीवनवृत्ति (Eros) और मृत्युवृत्ति (Thenatos) कहा है, कर्टलविन ने इन्हें आकर्षण-शक्ति (Positive valence) और विकर्षणशक्ति (Negative valence) कहा है। इस प्रकार, इन्द्रियों का विषयों से सम्बन्ध होने पर संस्कारों के कारण मन में विषयों के प्रति अनुकूल या प्रतिकूल भाव बनते हैं, जिनसे राग-द्वेष का जन्म होता है और वे प्राणी के समग्र क्रिया-कलापों का नियमन करने लगते हैं। यहाँ यह भी स्पष्ट हो जाता है कि कामना, संकल्प या राग-द्वेष की प्रवृत्तियों की उत्पत्ति के मूलभूत आधार हमारी इन्द्रियाँ और मन हैं, अत: उनके सम्बन्ध में भी थोड़ा विचार कर लेना उपयुक्त होगा।
'इन्द्रिय' शब्द काअर्थ- ‘इन्द्रिय' शब्द के अर्थ की विशद विवेचना न करते हुए यहाँ हम केवल यही कहेंगे कि जिन-जिन साधनों की सहायता से जीवात्मा विषयों की ओर अभिमुख होता है, अथवा विषयों के उपभोग में समर्थ होता है, वे इन्द्रियाँ हैं।42 इस अर्थको लेकर जैन, बौद्ध और गीता की विचारणा में कहीं कोई विवाद नहीं पाया जाता है।
इन्द्रियों की संख्या- (अ) जैन-दृष्टिकोण- जैन-दर्शन में इन्द्रियाँ पाँच मानी गई हैं। 1. श्रोत्र, 2. चक्षु, 3. घ्राण, 4. रसना और 5. स्पर्शन (त्वचा)। जैन-दर्शन में मन को नोइन्द्रिय (Quasi sense organ) कहा जाता है। जैन-दर्शन में कर्मेन्द्रियों का विचार उपलब्ध नहीं है, फिर भी पाँच कर्मेन्द्रियाँ उसकी 10 बल की धारणा में से वाक्बल, शरीरबल और श्वासोच्छास-बल में समाविष्ट हो जाती हैं।
(ब) बौद्ध-दृष्टिकोण- बौद्ध-ग्रन्थ विसुद्धिमग्ग में इन्द्रियों की संख्या 22 वर्णित है। बौद्ध-विचारधारा उक्त पाँच इन्द्रियों एवं मन के अतिरिक्त पुरुषत्व, स्त्रीत्व, सुख-दु:ख तथा शुभ एवं अशुभ मनोभावों को भी इन्द्रियों में मान लेती है।
(स) गीता का दृष्टिकोण- गीता में भी जैन-दर्शन के समान पाँच इन्द्रियों एवं छठे मन को स्वीकार किया गया है। शांकर-वेदान्त एवं सांख्य-दर्शन में इन्द्रियों की संख्या 11 मानी गई है -5 ज्ञानेन्द्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ और 1 अन्त:करण।
जैन-दर्शन में इन्द्रिय-स्वरूप- जैन-दर्शन में उक्त पाँचों इन्द्रियाँ दो प्रकार की हैं- 1. द्रव्येन्द्रिय, 2. भावेन्द्रिय । इन्द्रियों का बाह्य संरचनात्मक-पक्ष (Structural
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