SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन-आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष 487 विचारणा ने पशु-जगत् आदि चेतना के निम्न स्तरों को भी नैतिकता की परिसीमा में माना है। वहाँ पाशविक-स्तर पर पाई जाने वाली वासना की अन्ध-प्रवृत्ति को भी नैतिकनिर्णयों का विषय माना गया है। _ वासना आचरण का प्रेरक-सूत्र- वासना, कामना, तृष्णा या संकल्प ही सभी नैतिक-विवेचना की परिसीमा में आनेवाले व्यवहारों के मूल में निहित है, इसी से उनका उद्भव होता है; अत: इसे नैतिकता की परिसीमा में आने वाले कर्मों का प्रेरक तथ्य भी कहा जा सकता है। बृहदारण्यकोपनिषद् में कहा गया है कि यह पुरुष कामनामय है", व्यक्ति की जैसी कामनाएँ होती हैं, वैसा उसका चरित्र बनता है। व्यक्ति के समग्र भूत, वर्तमान एवं भविष्यकालिक-कर्म, जिनसे उसका चरित्र बनता है, काम से ही प्रवृत्त होते हैं और उसी में उनका निवर्तन होता है। व्यक्ति क्यों दुष्कर्मों या अनाचार में प्रवृत्त होता है, यह आचारदर्शन का एक गम्भीर प्रश्न है। समालोच्य आचार-दर्शनों ने इस प्रश्न पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया है। जैन-दृष्टिकोण-जैन-दर्शन में राग और द्वेष-ये दो कर्म-बीज याकर्ममय जीवन के प्रेरकसूत्र माने गए हैं। इनमें भी राग ही प्रमुख है।आचारांगसूत्र में कहा गया है कि काम में जो आसक्ति है, वह कर्म का प्रेरक तथ्य है।" सम्पूर्ण जगत् में जो कायिक, वाचिक और मानसिक-कर्म (दु:ख) है, वह काम-भोगों की अभिलाषा से उत्पन्न होता है।18 जैन-दर्शन के अनुसार यह कामनवासना या रागभाव, जो कि पूर्व कर्म-संस्कारों के कारण उत्पन्न होता है, प्राणी के व्यवहार का प्रेरक-सूत्र है। पूर्व कर्म-संस्कारों से रागादिके संकल्प होते हैं और उनसे ही कर्म की परम्परा बढ़ती है। बौद्ध-दृष्टिकोण- बौद्ध-दर्शन में कर्म-प्रेरक के रूप में काम, तृष्णा, इच्छा (छन्द) एवं राग माने गए हैं, जो वस्तुत: एकही अर्थ के बोध हैं। भगवान बुद्ध कहते हैं कि तुष्णा से युक्त होकर प्राणी बन्धन में पड़े हुए खरगोश की भाँति संसार-परिभ्रमण करता रहता है।" काम से ही समस्त शोक और भय उत्पन्न होते हैं।20 अंगुत्तरनिकाय में कर्मों की उत्पत्ति के कारण की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि भूत, भविष्य और वर्तमान के छन्द-रागस्थानीय विषयों को लेकर जो छन्द (इच्छा) उत्पन्न होता है, वही कर्मों की उत्पत्ति का हेतु है। इस प्रकार भूतकाल, भविष्यकाल और वर्तमानकाल के विषयों के सम्बन्ध में जो इच्छा है, वही कर्मों की उत्पत्ति का कारण है। वैसे, भगवान् बुद्ध ने लोभ, द्वेष और मोहइन तीनों को अशुभ कर्मों की और अलोभ, अद्वेष और अमोह कोशुभ कर्मों की उत्पत्तिका हेतु भी कहा है।2 बौद्ध-दर्शन ने इस तथ्य को भी समझने का प्रयास किया कि वासना की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy