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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
वेदना के समकक्ष है, बौद्ध-विचारणा की चेतना (संकल्प) की तुलना जैन-विचारणा की कर्म-चेतनासे की जा सकती है। तीनों पक्षों से समन्वित चेतना नैतिक आधार परशोभना, अकुशल और अव्यक्त-ऐसे तीन भागों में विभाजित की गई है। पुन:, शोभना या कुशलचेतना को तीन उपभागों में विभाजित किया गया है - 1. शुभ संकल्प-चेतना, 2. शुभ विपाक-चेतना और 3. शुभ क्रिया-चेतना। इसी प्रकार, अशुभ या अकुशल-चेतना भी 1. अकुशल संकल्प-चेतना, 2. अकुशल विपाक-चेतना, और 3. अकुशल क्रियाचेतना (ज्ञान-चेतना)- ऐसे तीन उपभागों में विभाजित की गई है, लेकिन उसमें से शुभ और अशुभ विपाक-चेतनाएँ तथा शुभ और अशुभ क्रिया-चेतनाएँ बन्धन की कोटि में नहीं आती हैं। यद्यपि बाह्य-जगत् में ये क्रियाशीलता की अवस्थाएँ हैं, लेकिन इनके पीछे कर्ता का कोई आशय नहीं होने से ये बन्धनकारक नहीं हैं। मात्रशुभ और अशुभसंकल्प-चेतना ही बन्धन-दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा संसार के आवागमन का कारण हैं।
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सन्दर्भ ग्रंथ1. तत्त्वार्थसूत्र, 8/2-3.
कर्म प्रकृति, बन्धप्रकरण, 1. 3. तत्त्वार्थसूत्र टीका, भाग 1, पृ. 343 उद्धृत स्टडीज इन जैन फिलासफी, पृ. 232.
तत्त्वार्थसूत्र, 8/4. तत्त्वार्थसूत्र, 6/1-2. वही, 6/3-4. वही, 6/5. तत्त्वार्थ सूत्र, 6/6.
नव पदार्थ ज्ञानसार, पृ. 100. 10. सूत्रकृतांग, 2/2/1.
(अ) समवायांग, 5/4; (ब) इसियभासिय, 9/53; (स) तत्त्वार्थ सूत्र, 8/1. 12. समयसार, 171.
उत्तराध्ययन, 32/7. 14. समयसार, 157. 15. संयुत्तनिकाय, 36/8, 43/7/3, 45/5/10. देखिए- बौद्ध धर्मदर्शना, पृ. 245.
धम्मपद, 292%; 17. मज्झिमनिकाय, 1/1/9. 18. संयुत्तनिकाय, 21/3/9. 19. अंगुत्तरनिकाय, 3/33, (पृ. 137).
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