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________________ 414 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन रूप में जैन-दर्शन के मोह-कर्म के समान जन्ममरण की श्रृंखला का सर्जक है और उत्पत्तिभव शेष निष्क्रिय कर्म-अवस्थाओं के समान है, जो मोहकर्म या कम्मभव के अभाव में जन्म-मरण की परम्परा के प्रवाह को बनाए रखने में असमर्थ है। इस प्रकार, बौद्ध-दर्शन का कर्मभव जैन-दर्शन के मोह-कर्म से और उत्पत्ति-भव जैन-विचारणा की शेष कर्मअवस्थाओं के समान है। इसे निम्न तुलनात्मक-तालिका से स्पष्ट किया जा सकता है बौद्ध-परम्परा जैन-परम्परा कम्मभव 1. अविद्या मोहकर्म की सत्ता की अवस्था। 2. संस्कार । - मोहकर्म की विपाक और नवीन बन्ध की अवस्था। 3. तृष्णा 4. उपादान 5. भव उत्पत्तिभव 6. विज्ञान 7. नाम-रूप 8. षडायतन 9. स्पर्श 10. वेदना । 11. जाति 12. जरा-मरण ज्ञानावरण, दर्शनावरण आयुष्य, नाम, गोत्र और वेदनीय कर्म की विपाक अवस्था। भावी जीवन के लिए आयुष्य, नाम, गोत्र आदि कर्मों की बन्धन की अवस्था। 9. चेतना के विभिन्न पक्ष और बन्धन कर्म-अकर्म विचार में हमने देखा कि बन्धन मुख्य रूप से कर्ता की चैत्तसिकअवस्था पर आधारित है, अत: यह विचार भी आवश्यक है कि चेतना और बन्धन के बीच क्या सम्बन्ध है ? आधुनिक मनोविज्ञान में चेतना आधुनिक मनोविज्ञान चेतना के तीन पक्ष मानता है, जिन्हें क्रमश:-(1) ज्ञानात्मकपक्ष, (2) भावात्मक-पक्ष और (3) संकल्पात्मक-पक्ष कहा जाता है। इन्हीं तीन पक्षों के आधार पर चेतना के तीन कार्य माने जाते हैं- 1. जानना, 2. अनुभव करना, 3. इच्छा करना। भारतीय-चिन्तन में भी चेतना के इन तीन पक्षों अथवा कार्यों के सम्बन्ध में प्राचीन समय से ही पर्याप्त विचार किया गया है। आचार्य कुन्दकुन्दने चेतना के निम्न तीन पक्षों का निर्देश किया है- 1. ज्ञानचेतना, 2. कर्मचेतना और 3. कर्मफलचेतना। तुलनात्मक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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