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कर्म बन्ध के कारण, स्वरूप एवं प्रक्रिया
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पुरुषार्थ करने की शक्ति का अभाव, 11. हीन स्वर, 12. दीन स्वर, 13. अप्रिय स्वर और 14. अकान्त स्वर।
7. गोत्र कर्म
जिसके कारण व्यक्ति प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित कुल में जन्म लेता है, वह गोत्रकर्म है। यह दो प्रकार का माना गया है- 1. उच्च गोत्र (प्रतिष्ठित कुल) और 2. नीच गोत्र (अप्रतिष्ठित कुल)167 किस प्रकार के आचरण के कारण प्राणी का अप्रतिष्ठित कुल में जन्म होता है और किस प्रकार के आचरण से प्राणी का प्रतिष्ठित कुल में जन्म होता है, इस पर जैनाचार-दर्शन में विचार किया गया है। अहंकारवृत्ति ही इसका प्रमुख कारण मानी गई है।
उच्च गोत्र एवं नीच गोत्र के कर्म-बन्ध के कारण- निम्न आठ बातों का अहंकार न करने वालाव्यक्ति भविष्य में प्रतिष्ठित कुल में जन्म लेता है- 1. जाति, 2. कुल, 3. बल (शारीरिक-शक्ति), 4. रूप (सौन्दर्य), 5. तपस्या (साधना), 6. ज्ञान (श्रुत), 7.लाभ (उपलब्धियाँ) और 8.स्वामित्व (अधिकार)। इसके विपरीत, जो व्यक्ति उपयुक्त आठ प्रकार का अहंकार करता है, वह नीच कुल में जन्म लेता है। कर्म-ग्रन्थ के अनसार भी अहंकाररहित गुणग्राही दृष्टि वाला, अध्ययन-अध्यापन में रुचि रखने वाला तथा भक्त उच्च-गोत्र को प्राप्त करता है और इसके विपरीत आचरण करने वाला नीच गोत्र को प्राप्त करता है।तत्त्वार्थसूत्र के अनुसार पर-निन्दा, आत्मप्रशंसा, दूसरों के सद्गुणों का आच्छादन और असद्गुणों का प्रकाशन-ये नीच गोत्र के बन्धके हेतु हैं। इसके विपरीत; पर-प्रशंसा, आत्म-निन्दा, सद्गुणों काप्रकाशन, असद्गुणों का गोपन और नम्रवृत्ति एवं निरभिमानताये उच्च गोत्र के बन्ध के हेतु हैं।69
गोत्र-कर्म का विपाक- विपाक (फल) दृष्टि से विचार करते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि जो व्यक्ति अहंकार नहीं करता, वह प्रतिष्ठित कुल में जन्म लेकर निम्नोक्त
आठ क्षमताओं से युक्त होता है- 1. निष्कलंक मातृ-पक्ष (जाति), 2. प्रतिष्ठित पितृ-पक्ष (कुल), 3. सबल शरीर, 4. सौन्दर्ययुक्त शरीर, 5. उच्च साधना एवं तप-शक्ति, 6. तीव्र बुद्धि एवं विपुल ज्ञानराशिपर अधिकार, 7. लाभ एवं विविध उपलब्धियाँ और 8. अधिकार, स्वामित्व एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति, लेकिन अहंकारी व्यक्तित्व उपर्युक्त समग्र समताओं से, अथवा इनमें से किन्हीं विशेष क्षमताओं से वंचित रहता है।
8. अन्तराय कर्म
अभीष्ट की उपलब्धि में बाधा पहुँचाने वाले कारण को अन्तराय-कर्म कहते हैं। यह पाँच प्रकार का है। 1. दानान्तराय- दान की इच्छा होने पर भी दान नहीं किया जा सके, 2. लाभान्तराय- कोई प्राप्ति होने वाली हो, लेकिन किसी कारण से उसमें बाधा आ
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