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________________ आचारदर्शन का तात्त्विक आधार 219 6 आचारदर्शन का तात्विक-आधार आचारदर्शन आदर्शमूलक विज्ञान है। वह नैतिक-जीवन के आदर्श के निर्धारण एवं परमसत्ता से उसके सम्बन्ध को स्पष्ट करने का प्रयत्न करता है, अत: अपरिहार्य रूप से तात्विक-चर्चा में आ जाता है। नैतिकता का चरम साध्य, परमसत्ता (Reality) से उसका सम्बन्ध, आदि कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण तात्त्विक-समस्याएँ प्रस्तुत कर देते हैं। इनका निराकरण किए बिना आचारदर्शन का सम्यक् विवेचन सम्भव नहीं है। प्रस्तुत अध्याय में भारतीय-आचारदर्शन के निम्न तात्त्विक-आधारों की चर्चा की जाएगी 1. आचारदर्शन और तत्त्वमीमांसा का पारस्परिक सम्बन्ध। 2. सत् के स्वरूप की नैतिक-समीक्षा। 3. जैन, बौद्ध और गीता की तत्त्वयोजना की तुलना। 4. नैतिकता की मान्यताएँ (Posulates of morality)। 1. आचारदर्शन और तत्त्वमीमांसा का पारस्परिक सम्बन्ध तत्त्वमीमांसा सत् के स्वरूप पर विचार करती है, जबकि आचारदर्शन जीवनव्यवहार के आदर्शों एवं मूल्यों का विचार करता है। वस्तुतः, विचार के ये दोनों क्षेत्र एकदूसरे के अति निकट हैं। जब हम एक-एक क्षेत्र में गहराई से प्रवेश करते हैं, तो निश्चित ही एक की सीमा का अतिक्रमण कर दूसरे क्षेत्र में प्रवेश करना होता है। मैकेंजी का कथन है कि (नीतिशास्त्र में) जब हम यह पूछते हैं कि मानव-जीवन का मूल्य क्या है, तब हमें तत्काल यह भी पूछना पड़ता है कि मानव-व्यक्तित्व का तात्विक-स्वरूप क्या है और वास्तविक जगत् में उसका स्थान क्या है ? निस्सन्देह, यहसम्भव है कि नीतिशास्त्र में हम कुछ दूर तक सत्तामीमांसा की अन्तिम समस्याओं का समाधान प्राप्त किए बिना चल सकें, लेकिन । (अन्ततोगत्वा) ये (समस्याएँ) हमें इन (तत्त्वमीमांसात्मक) समस्याओं में अनिवार्यत: उलझा ही देती हैं। डॉ. राधाकृष्णन् भी आचारदर्शन और तत्त्वमीमांसा के पारस्परिक-सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि कोई आचारशास्त्र तत्त्वदर्शन पर या चरमसत्य के एक दार्शनिक-सिद्धान्त पर आश्रित अवश्य होगा। चरमसत्य के विषय में हमारी भावना के अनुरूप ही हमारा आचरण होगा। दर्शन और आचरण साथ-साथ चलते हैं।' वस्तुत:, जब तक हमें सत् के स्वरूप अथवा जीवन के आदर्श का बोध नहीं होता, तब तक आचरण का मूल्यांकन भी सम्भव नहीं होता, क्योंकि यह मूल्यांकन तो व्यवहार या संकल्प के नैतिक-आदर्श के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है और नैतिक-आदर्श का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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