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________________ भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त 217 90. देखिए- (अ) समकालीन दार्शनिक चिन्तन, पृ. 300-325. . (ब) कन्टेम्पररि एथिकलथ्योरीज, पृ. 177-188. 91. (अ) माणुस्सं सुदुल्लहं/-महावीर (ब) भवेषु मानुष्यभव: प्रधानम् /- अमितगति (स) किच्चे मणुस्स पटिलाभो/- धम्मपद, 182. (द) गुह्यं ब्रह्म वदिदं को ब्रवीमि ____ नमानुषात् श्रेष्ठतरं हि किंचित् /- महाभारत, शान्तिपर्व, 299 /20. 92. कण्टेम्परेरि एथिकल थ्योरीज, पृ. 177-180. 93. आचारांग, 11/3. सूत्रकृतांग, 1/8/3. 95. धम्मपद, 2/1. सौन्दरनन्द, 14/43-45. गीता, 2/63. देखिए (अ) कण्टेम्पररि एथिकलथ्योरीज, पृ. 181-184. (ब) विजडम आफ कण्डक्ट-सी.बी. गर्नेट. 99. दशवैकालिक,4/8. 100. बबिट के दृष्टिकोण के लिएदेखिए-(अ) कण्टेम्पररि एथिकलथ्योरीज, पृ. 185-186. (ब) दिब्रेकडाउन आफ इण्टरनेशनलिज्म - प्रकाशित 'दिनेशन' खण्डस (8) जून 1915. (स) आन बीइंग क्रिएटिव-बबिट 101. दशवैकालिकसूत्र, 1/1.. 102. उत्तराध्ययन, 31/2. 103. देखिए-समकालिकदार्शनिक,पृ. 221-246. 104. उत्तराध्ययन, 6/9-11; तुलना कीजिए-धम्मपद, 259. 105. उद्धृत-आत्मसाधनासंग्रह, पृ.441. 106. देखिए-आचारांग, 1/2/6/102; ओघनियुक्ति,754. 107. नैतिकताका गुरुत्वाकर्षण, पृ. 11. 108. विशेषावश्यकभाष्य, 3254. 109. देखिए- कण्टेम्पररि एथिकलथ्योरीज,अध्याय 17, पृ. 274-284. 110. मरणसमाधि, 603. 111. उत्तराध्ययन, 13/16. 112. प्राकृत सूक्तिसरोज, 11/11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003607
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages554
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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