________________
भारतीय और पाश्चात्य नैतिक मानदण्ड के सिद्धान्त
177
माना जाता है। मूल्यवाद के अनुसार मूल्य वह है, जो भावना या इच्छा की पूर्ति करता है। मूल्य की समुचित परिभाषा यह हो सकती है कि मूल्य वह है, जिसे पाने के लिए व्यक्ति
और समाज चेष्टा करते हैं, जिसके लिए जीवित रहते हैं और जिसके लिए बड़ा से बड़ा उत्सर्ग करने के लिए तैयार रहते हैं।'
___मूल्यवाद के अनुसार शुभ और उचित, परिणामों या शुभ संकल्पों पर निर्भर नहीं है। शुभ एवं उचित, जीवन के उन आदर्शों से निर्गमित होते हैं, जो हमारे जीवन का परमार्थ या श्रेय है। मूल्यवाद की परम्परा में मूल्य एक व्यापकशब्दहै। वह यद्यपि श्रेय, साध्य का आदर्श या सूचक है, तथापि कोई अकेला साध्य मूल्य नहीं है। मूल्य सदैव व्यवस्था में निर्धारित होता है। सुख, जीवन, वैराग्य आदि में प्रत्येक एक मूल्य है, किन्तु मूल्य उससे अधिक व्यापक है। मूल्य' एक तत्त्व नहीं है, एक व्यवस्था है और उसी व्यवस्था में किसी मूल्य का बोध होता है।
मूल्यवादमूल्य की अपेक्षा मूल्यों (Values) पर बल देता है, फिर भी परम मूल्य' या सर्वोच्च मूल्य क्या है, यह विषय मूल्यवादी-विचारणा में विवादपूर्ण ही रहा है। सुकरात 'ज्ञान' को प्लेटो 'न्याय' को, अरस्तू ‘उच्चविचारशीलता' को, स्पीनोजा 'ईश्वर' को
और हेगल व्यक्तित्त्वलाभ' को सर्वोच्च मूल्यमानते हैं। अरबन ने आध्यात्मिक-मूल्यों में क्रमश: कलात्मक, बौद्धिक और धार्मिक (चारित्रिक) मूल्यों के रूप में सौन्दर्य, सत्य और शिव (कल्याण) को परम मूल्य माना है, जिनमें भी प्रथम की अपेक्षा दूसरा और दूसरे की अपेक्षा तीसरा अधिक उच्च माना गया है। मूल्यवाद की इस परम्परा में भी परम मूल्य' की धारणा के आधार पर अनेक वर्ग बनते हैं, उनमें कुछ दृष्टिकोण निम्नानुसार हैं
1. मानवता-केन्द्रित मूल्यवाद (मानवतावाद) 2. अस्तित्ववादियों का आत्म-केन्द्रित मूल्यवाद 3. मार्क्स का समाज एवं अर्थ-केन्द्रित मूल्यवाद
4. अरबन का आध्यात्मिक-मूल्यवाद 8. मानवतावादी सिद्धान्त और जैन-आचारदर्शन
मानवतावाद में नैतिकता का प्रत्यय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यही कारण है कि मानवतावाद को आचारशास्त्रीय-धर्म कहा जाता है। मानवतावादी-सिद्धान्त नैतिकता को मानव की सांस्कृतिक-चेतना के विकास में देखता है। सांस्कृतिक-विकास ही नैतिकता की कसौटी है। सांस्कृतिक-विकास एवं नैतिक-जीवन मानवीय-गुणों के विकास में निहित हैं। मानवतावादी-चिन्तन में मनुष्य ही नैतिक-मूल्यों का मानदण्ड और मानवीय-गुणों का विकास ही नैतिकता है। मानवतावादी-विचारकों की एक लम्बी परम्परा है। प्लेटो और अरस्तू से लेकर लेमाण्ट, जाकमारिता तथा समकालीन विचारकों में वारनर फिटे, सी.बी.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org