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भारतीय आचारदर्शन एक तुलनात्मक अध्ययन
विषय एवं आदर्श सुन्दरता है, जबकि नीतिशास्त्र का विषय एवं आदर्श शुभ या शिव (कल्याण) है। तार्किक - निर्णय ज्ञानात्मक हैं और सौन्दर्यविषयक निर्णय अनभूत्यात्मक, जबकि नैतिक निर्णय संकल्पात्मक हैं। 2
2. नैतिक निर्णय का कर्त्ता
नैतिक निर्णय की सम्भावना के लिए निर्णायक, निर्णय की वस्तु और निर्णय का मानदण्ड - तीनों ही आवश्यक हैं। प्रश्न यह है कि नैतिक निर्णय कौन देता है ? नीतिवेत्ताओं का इस सम्बन्ध में मतभेद है। शेफ्ट्स्बरी नैतिक मूल्यांकन के कर्त्ता के रूप में नीतिविशेषज्ञ को मानते हैं। उनके अनुसार, जिस प्रकार कला का पारखी कला के सम्बन्ध में निर्णय देता है, उसी प्रकार नीतिविशेषज्ञ नैतिक-कर्मों के बारे में निर्णय देता है। वस्तुतः, नैतिक निर्णय कार्त्ता हमारी बौद्धिक या आदर्श आत्मा है। एडम स्मिथ ने नैतिक निर्णय का कर्त्ता निरपेक्ष दृष्टा आत्मा को माना है।' उनके अनुसार, हमारी ही आत्मा एक तटस्थ निर्णायक के रूप में नैतिक निर्णय देती है। व्यक्ति का निर्णायक, उसका आदर्श आत्मा ही है, जो एक तटस्थ दृष्टा के रूप में स्वयं के और दूसरों के कर्मों पर नैतिक निर्णय देता है। मैकेंजी ने नैतिक निर्णय का कर्त्ता उस दृष्टिकोण को माना है, जिससे भला या बुरा कर्म किया जाता है । इस प्रकार नैतिक निर्णय का कर्त्ता या तो निरपेक्ष दृष्टा या आदर्श आत्मा को माना गया है, या कर्ता के उस दृष्टिकोण को, जिसके आधार पर कोई कर्म भला या बुरा निर्धारित किया जाता है । यदि इस प्रश्न को जैन- दृष्टिकोण से देखा जाए, तो उपर्युक्त दोनों दृष्टिकोणों में कोई विरोध नहीं रहता। जैन दर्शन के अनुसार, यथार्थ नैतिक निर्णय तो निरपेक्ष-दृष्टि वीतराग आत्मा के द्वारा ही हो सकता है, लेकिन व्यावहारिक जीवन में हमारे दृष्टिकोण ही नैतिक-निर्णय के आधार बनते हैं । व्यक्ति अपने दृष्टिकोण के आधार पर ही अच्छे या बुरे का निर्णय लेता है।
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3. हेतुवाद और फलवाद की समस्या
कर्त्ता का प्रत्येक कर्म, जो नैतिक मूल्यांकन का विषय बनता है, किसी उद्देश्य से अभिप्रेरित होकर प्रारम्भ होता है और अन्त में किसी परिणाम को निष्पन्न करता है। इस प्रकार कार्य का विश्लेषण यह दर्शाता है कि प्रत्येक कार्य में एक हेतु होता है, जिससे कार्य प्रारम्भ होता है और एक फल होता है, जिसमें कार्य की परिसमाप्ति होती है। हेतु को
मानसिक पक्ष और फल को उसका भौतिक परिणाम कहा जा सकता है। हेतु का कर्त्ता के मनोभावों से निकट सम्बन्ध है, जबकि फल का निकट सम्बन्ध कर्म से है। हेतु पर दिया गया निर्णय कर्त्ता के सम्बन्ध में होता है। नीतिज्ञों के लिए यह प्रश्न विवादपूर्ण रहा है कि कार्य के शुभत्व एवं अशुभत्व का मूल्यांकन उसके हेतु के सम्बन्ध में किया जाए, या
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