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निवृत्ति ही मोक्ष है सांख्य की मोक्ष की अवधारणा में सुख या आनन्द का कोई अवकाश नहीं सुख का संबंध दुख के साथ है पुरूष निष्क्रिय उदासीन चैतन्य है बन्धन और मोक्ष से अस्पृष्ट है पुरूष, प्रकृति की प्रसूति बुद्धि में पड़ने वाले अपने प्रतिबिम्ब से स्वयं को अभिन्न मान लेता है
और इस प्रकार भ्रमवश प्रकृति से तादात्म्य स्थापित कर बन्धन का सृजन करता है बन्धन और मुक्ति तो बुद्धि में पड़ने वाले इस प्रतिबिम्ब की होती है प्रकृति और पुरूष का भेद ज्ञान होने पर शरीर में ही जीवन मुक्ति है प्रकृति जन्य शरीर के त्यागने पर विदेह मुक्ति ही आत्यन्तिक मुक्ति है
अनुभूति एवं दर्शन / 55
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