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________________ ही बद्ध जीव है सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र्य से अंहिसा सत्य अचौर्य ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह रूप पंचमहाव्रतों के पालन में कर्मो का आवरण तोडकर वही बद्ध जीव मुक्त बन जाता है फिर वही भगवान / परमात्मा कहलाता है जैन दर्शन सभी जीवों को भगवान बनने का अधिकार देता है। मोक्षावस्था में जीव पुद्गल से पृथक् हो केवल दुख का ही अन्त नहीं करता अपने शुद्ध स्वरूप को प्रकट कर अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन अनन्त वीर्य एवं अनन्त आनन्द को पाता और पुनः संसार में लौटकर नहीं आता आस्रव और बंध संसार के है कारण संवर और निर्जरा से मुक्ति का होता वरण यही जैन दर्शन का है सार शेष मात्र इसका विस्तार | Jain Education International अनुभूति एवं दर्शन / 51 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003606
Book TitleAnubhuti evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2006
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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