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हृदय में निर्भयता का संचार कर आत्म विश्वास का बन अधिष्ठाता जीव से शिव बनने का मार्ग भी गुरू ही बतलाता।
स्वयं को स्वयं के प्रति सजग सावधान वह बनाता उसके मार्गदर्शन में उठने-बैठने खाने-पीने चलने-बोलने का सारा ढंग ही बदल जाता वह तो जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाता जीवन जीने की कला भी गुरू ही सिखाता
प्रत्यक्ष चाहे न भी हो परोक्ष में भी उस पर श्रद्धा का फल लगता है विस्मयकारी एकलव्य ने जब मन में ठानी गुरू प्रतिमा से ही सारी विद्या जानी
अनुभूति एवं दर्शन / 24
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