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प्रभु से मिलन
प्रियतम प्रभु मेरे तुम्हें पाने को हूँ मैं अधीर सजकर संयम सोलह श्रृंगार कर रही हूँ बस इंतजार वैराग्य के रंग की चूनर ओढ़ आज्ञा का है तिलक भाल पर मर्यादाओं की है पायल पैरों में शील के कंगन पहन संयम का अंजन नयनों में आंजकर मिलने को हूँ बेचैन
पर यह मिलन कैसे होगा संभव तुम अशरीरी मैं सशरीरी तुम अविकारी मैं विकारी तुम कर्म रज से रहित मैं कर्म-रज के सहित किन्तु यह सब भी तो मेरा स्वरूप नहीं स्वभाव को छोड़कर विभाव में भटकी कहीं
अनुभूति एवं दर्शन /21
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