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तब देहासक्ति से परे पक में कमलवत् निज जीवन होता है तब अनुराग के हेतु भौतिक पदार्थ भी निर्लिप्त चेतना में बन जाते हैं विराग के हेतु अंतर की सहजता और सरसता की सौरभ बिखेरती होती है स्वयं की अभिव्यक्ति।
अनुभूति एवं दर्शन / 19
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