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स्वकथ्य
प्राच्य विद्यापीठ शाजापुर में अपने अध्ययन हेतु प्रयत्नशील रहते हुए मेरे मन में यह प्रेरणा जाग्रत हुई कि जैन धर्म दर्शन के गूढतम् रहस्यों को सहज और सुगम शैली में मुक्तक काव्यों के रुप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाय कि वे जन-जन के लिए सुग्राह्य और रुचिकर बन सके। इसी सहज प्रेरणा का फल है प्रस्तुत कृति " सत्यानुभूति" । यह कृति कितनी सुबोध और जनग्राही बन सकेगी यह तो पाठको के निर्णय का विषय है । मैंने तो स्वानुभूतियों को सहज रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयत्न किया है । इसे एक सम्यक् आकार दिया है इसके सम्पादक विद्वद् मनीषी डॉ. सागरमल जैन ने साथ ही इसकी काव्यत्मकता को निखारने में परम सहयोगी रहे है डॉ. दूर्गाप्रसाद जी झाला । वस्तुतः मैंने तो जो कुछ सीखा और जाना है, उन्हीं अनुभूत सत्यों को अभिव्यक्त करने का प्रयत्न भी किया है, इसके पीछे प्रेरणा और आशीर्वाद तो गुरुवर्य एवं गुरुणीवर्या का ही है। इस कृति के प्रकाशन के पुनीत अवसर पर उनका स्मरण करना मेरा अपना दायित्व है । सर्वप्रथम तो मैं कृत्य कृत्य हूँ विश्वपूज्य आचार्य राजेन्द्रसूरिश्वरजी म.सा. की दिव्यकृपा की एवं अध्ययन हेतु सतत् प्रेरणा प्रदाता वर्तमान आचार्य देवेश की अनुकंपा और अनुशंसा की, जो इस प्रकाशन का सबसे महत्त्वपूर्ण सम्वल है में अभारी हूँ । मातृहृदया पूज्या महाप्रभाश्रीजी म.सा. की जो सन्यास मार्ग में मेरे प्रेरणास्रोत रहे है साथ ही मैं आभारी हूँ पूज्या सरल स्वाभाविनी स्वयंप्रभा श्री म.सा., पूज्या वात्सल्य प्रदात्री विद्वद्वर्या डॉ. प्रियदर्शनाश्री म.सा. पूज्या सरलहृदया कनकप्रभा श्री म.सा., स्नेह सरिता विद्ववर्या डॉ. सुदर्शना श्री म.सा., जीवन निर्मात्री भगिनीवर्या प्रीतिदर्शनाश्री म.सा., जिनकी प्रेरणाएँ मेरी संयमयात्रा एवं विद्योपासना का आधार है । इसके कम्प्यूटरकृत टंकण के लिए संजय सक्सेना और मुद्रण हेतु आकृति प्रेस के प्रति भी हमारी सद्भावनाएँ । साथ ही प्रकाशन कार्य में अर्थसहयोग हेतु श्री संजय कुमार जी रमेशचन्द्र जी ओरा का भी आभार।
साध्वी रुचिदर्शनाश्री |
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अनुभूति एवं दर्शन / 1
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