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________________ के अन्य सात अंगों की साधना भी जैन साधुओं और साध्वियों द्वारा की जाती थीं, आगम में उनके उल्लेख भी है, लेकिन हमें यह कहने का कोई अधिकार नहीं है, कि पतंजलि ने इनको जैनियों या अन्य श्रमण परम्पराओं से ग्रहण किया, अथवा जैनियों और अन्य श्रमण परम्पराओं में इनकों पतंजलि से ग्रहण किया। मेरे विचार से दोंनो ने ही इन्हे भारत की प्राचीन श्रमण परम्परा से ही ग्रहण किया, जिसकी ये शाखाएँ हैं। तृतीय और चतुर्थ काल के सम्बन्ध में हम केवल यह कह सकते है कि इन कालो में जैनियों ने जैनयोग और ध्यान सम्बन्धी अनेक कर्मकांड परक पद्धतियाँ हिन्दू और बौद्ध तान्त्रिक साधनाओं से ग्रहण की इन दोनो कालो में जैनयोग और ध्यान पर अन्य पद्धतियो का प्रभाव सरलता से देखा जा सकता है। वर्तमान समय में जैनयोग और ध्यान साधना पुनर्जीवित हो गई है और सामान्यतः जैन लोगों में उसके प्रति सजगता है, लेकिन यह स्पष्ट है कि जैनयोग और ध्यान की वर्तमान पद्धतियों का विकास पूरी तरह विपश्यना ओर पतंजलि के अष्टांगयोग की साधना के साथ कुछ आधुनिक मनोवैज्ञानिक तथा दार्शनिक अध्ययनो इसके आधार पर हुआ है अंत में मै अपने इस आलेख का समापन आचार्य अमितगति के "सामायिक-पाठ” के एक सुन्दर उद्वरण के साथ करना चाहूँगा “सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदम् क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् माध्यस्थ भावं विपरीतवृत्तौ सदा ममात्मा विददातु देव।। हे भगवान ! मैं संसार के सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखू और गुणीजनों से मिलने पर प्रसन्नता का अनुभव करूँ। जो अत्यन्त दुःखी अवस्था में हैं, उनका सदा सहायक बनें और अपने विरोधियों के प्रति सहनशील रहँ। 36 : समत्वयोग और अन्य योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003605
Book TitleSamatva Yoga aur Anya Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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