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________________ की है, जैनयोग पर बहुत ही कम लिखा गया है। उनके अनुसार जैनयोग का अर्थ है, आत्मोन्नति (Emancipation) का साधना मार्ग। जैनयोग के विषय में प्रो. पद्यनाभ जैनी के ग्रन्थ 'जैन पाथ आँफ प्यूरिफिकेशन' का भी उल्लेख किया जा सकता है। आजकल हिन्दी में भी जैनयोग पर जो भी लिखा गया है, उसमें सर्वप्रथम और श्रेष्ठ ग्रन्थ है, मुनि नथमलजी, (आचार्य महाप्रज्ञजी) कृत जैनयोग। उन्होनें योग और प्रेक्षा ध्यान पर अनेक ग्रन्थ लिखे है। ए.बी. दिगे का पी-एच. डी. का शोधप्रबन्ध भी जैनयोग पर ही है और जो पी.वी. रिसर्च इंस्टीट्यूट वाराणसी से प्रकाशित भी है। यदि हम संक्षेप में जैनयोग के ऐतिहासिक विकास क्रम और उस पर अन्य भारतीय योग-पद्धतियों के प्रभाव के बारे में जानना चाहते है तो हमें जैनयोग पद्धति के विकास को निम्नाकित पाँच चरणों में विभाजित कर के देखना चाहिये- 1. आगम युग के पूर्व की स्थिति (ईसा पूर्व ६टी शताब्दी), 2. आगमयुग (ई.पू. ५वी शती से ईसा की ५ वी शती), 3. मध्यकाल (ईसा की ६शती से १ष्वी शती), 4. तन्त्र एवं कर्मकाण्ड का युग (ईसा की १३वी शती से १६वी शती), 5. आध निकयुग। 1. आगमपूर्वयुग- भारत मे योग और ध्यान की अवधारणा उतनी ही पुरातन है, जितनी कि स्वयमेव भारतीय संस्कृति है। अति प्राचीन काल से योग और ध्यान के संदर्भ में दो प्रकार के प्रमाण हमें मिलते है- 1.पुरातात्विक (Seculptural evidences) और 2. साहित्यिक (Literary)। प्रारम्भिक काल से ही योग और ध्यान के इन दोनो ही प्रकारो के प्रमाण उपलब्ध है, लेकिन यह कहना कठिन है कि ये योग और ध्यान के ये प्रमाण जैन-पद्धति का समर्थन करते है। हम केवल इतना कह सकते है, कि प्राचीन योग और ध्यान के ये संदर्भ भारतीय श्रमणसंस्कृति से जुड़े हुए है। जैन, बौद्ध आजीवक, सांख्य-योग तथा अन्य छोटी बड़ी श्रमण-परम्पराएँ इसी से उद्भूत हुई है। इसका कारण यह है कि ध्यान और योग को प्रत्येक भारतीय पद्धति में आधिकरिक रूप से अपनाया गया था। इसीलिये कतिपय जैन विद्धानों ने यह कहने का अतिसाहस भी किया है कि ये सन्दर्भ उनकी अपनी परम्परा के संदर्भ है। योग और ध्यान सम्बन्धी प्राचीन पुरातात्त्विक प्रमाण मोहनजोदडो और हरप्पा से मिले हैं। वहाँ खुदाई में कुछ ऐसी सीले मिली है, जिन पर योगी ध्यानमुद्रा में बैठे हुए या खडे हुए दिखाये गये है। इससे 20 : समत्वयोग और अन्य योग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003605
Book TitleSamatva Yoga aur Anya Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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