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________________ समान अधिकारों से युक्त हैं। यह निष्ठा साम्ययोग के सामाजिक-सन्दर्भ का आवश्यक अंग है । इसके मूल में सभी मनुष्यों को समान अधिकार से युक्त समझने की धारणा रही हुई है । यह सामाजिक न्याय का आधार है, जो सामाजिक संघर्ष को समाप्त करता है । समत्वयोग के क्रियान्वयन के चार सूत्र - (1) वृत्ति में अनासक्ति - अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण - यह समत्वयोग की साधना का प्रथम सूत्र है । अहंकार, ममत्व और तृष्णा का विसर्जन समत्व के सर्जन के लिए आवश्यक है । अनासक्त-वृत्ति में ममत्व और अहंकार- दोनों का पूर्ण समर्पण आवश्यक है। जब तक अहम् और ममत्व बना रहेगा, समत्व की उपलब्धि संभव नहीं होगी, क्योंकि राग के साथ द्वेष अपरिहार्य रूप से जुड़ा हुआ है। जितना अहम् और ममत्व का विसर्जन होगा, उतना ही समत्व का सर्जन होगा। अनासक्ति चैतसिक संघर्ष का निराकरण करती है एवं चैतसिकसमत्व का आधार है। बिना चैतसिक-समत्व के सामाजिक जीवन में साम्य की उद्भावना नहीं हो सकती । वह (2) विचार में अनाग्रह - जैनदर्शन के अनुसार आग्रह एकांत है और इसलिए मिथ्यात्व भी है। वैचारिक-अनाग्रह समत्वयोग की एक अनिवार्यता है। आग्रह वैचारिक हिंसा भी है, दूसरे के सत्य को अस्वीकार करता है तथा समग्र वैचारिक-सम्प्रदायों एवं वादों का निर्माण कर वैचारिक-संघर्ष की भूमिका तैयार करता है, अतः वैचारिक- समन्वय और वैचारिक - अनाग्रह समत्वयोग का एक अपरिहार्य अंग है। यह वैचारिक संघर्ष को समाप्त करता है। जैनदर्शन इसे अनेकान्तवाद या स्याद्वाद के रूप में प्रस्तुत करता है। (3) वैयक्तिक - जीवन में असंग्रह - अनासक्त वृत्ति को व्यावहारिक जीवन में उतारने के लिए असंग्रह आवश्यक है। यह वैयक्तिक- अनासक्ति का समाज - जीवन में व्यक्ति के द्वारा दिया गया प्रमाण है और सामाजिक समता के निर्माण की आवश्यक कड़ी भी है। सामाजिकजीवन में आर्थिक विषमता का निराकरण असंग्रह की वैयक्तिक-साधना के माध्यम से ही सम्भव है। - - (4) सामाजिक- आचरण में अहिंसा - जब पारस्परिक व्यवहार अहिंसा पर अधिष्ठित होगा, तभी सामाजिक जीवन में शांति और साम्य सम्भव होंगे। जैनदर्शन के अनुसार, अहिंसा का मूल आधार आत्मवत् - दृष्टि है और अहिंसा की व्यवहार्यता अनासक्ति पर निर्भर है । वृत्ति में जितनी अनासक्ति होगी, व्यवहार में उतनी ही अहिंसा प्रकट होगी । जैन आचार्यों की दृष्टि में अहिंसा केवल निषेधात्मक नहीं है, वरन् वह विधायक भी है। मैत्री और करुणा उसके विधायक पहलू हैं । अहिंसा सामाजिक संघर्ष का निराकरण करती है । इस प्रकार, जैनदर्शन के अनुसार वृत्ति में अनासक्ति, विचार के अनेकान्त, अनाग्रह, समत्वयोग और अन्य योग 17 Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.003605
Book TitleSamatva Yoga aur Anya Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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