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________________ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : ६७ सर्वार्थसिद्धि तत्त्वार्थभाष्य वर्णित है। उसमें अपने मत की पुष्टि में आवश्यक नियुक्ति की पाँचवीं गाथा भी कुछ पाठभेद के साथ उद्धृत है। यह गाथा पंचसंग्रह (१/९८) में भी उपलब्ध है। जबकि भाष्य में ये व्याख्याएँ इस प्रकार दो-चार अपवादों को अत्यन्त संक्षिप्त हैं। छोड़कर सामान्यतः सर्वार्थसिद्धि में हर सूत्र की विस्तृत व्याख्याएँ उपलब्ध होती हैं। __यहाँ हम अधिक कुछ न कहकर पाठकों से इतना निवेदन अवश्य करेंगे कि वे निर्देशित अंशों का स्वयं अवलोकन करके यह निश्चित कर लें कि कौन विकसित है ? तत्त्वार्थभाष्य की स्वोपज्ञता एवं प्राचीनता तत्त्वार्थभाष्य को दिगम्बर विद्वान पं० नाथुरामजी प्रेमी ने न केवल स्वोपज्ञ माना है अपितु उसे सर्वार्थसिद्धि आदि सभी दिगम्बर टोकाओं से प्राचीन भी माना है । हम यहाँ उनके कथन को शब्दशः उद्धृत कर रहे हैं "भाष्य की प्रशस्ति उमास्वाति का पूरा परिचय देनेवाली और विश्वस्त है। इसमें कोई बनावट नहीं मालूम होती और इससे प्रकट होता है कि मूलसूत्र के कर्ता का ही यह भाष्य है। भाष्य की स्वोपज्ञता में कुछ लोगों को सन्देह है; परन्त नीचे लिखी बातों पर विचार करने से वह सन्देह दूर हो जाता है १. भाष्य की प्रारम्भिक कारिकाओं में और अन्य अनेक स्थानों में 'वक्ष्मामि' 'वक्ष्यामः' आदि प्रथम पुरुष का निर्देश है और निर्देश में की गई प्रतिज्ञा के अनुसार ही बाद में सूत्रों में कथन किया गया है। अतएव सूत्र और भाष्य दोनों के कर्ता एक हैं। - २. सूत्रों का भाष्य करने में कहीं भी खींचातानी नहीं की गई। सूत्र का अर्थ करने में भी कहीं सन्देह या विकल्प नहीं किया गया और न १. ज्ञातव्य है कि पृ० ३०५ से लेकर ३११ तक का यह समग्र अंश हमने पं० नाथूरामजी प्रेमी के 'जैन साहित्य और इतिहास' से यथावत् उद्धृत किया है और इस हेतु हम लेखक और प्रकाशक के अभारी हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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