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________________ तत्त्वार्थसूत्र और उसकी परम्परा : ४१ किशोर जी आदि सूत्र और भाष्य में विरोध दिखाते हुए यह सिद्ध करते हैं कि वे भी भिन्न कृतक हैं । पं० फूलचन्द जी लिखते हैं___ (i) “साधारणतः किसी विषय को स्पष्ट करने, उसकी सूचना देने या अगले सत्र की उत्थानिका बाँधने के लिए टीकाकार आगे के या पीछे के सूत्र का उल्लेख करते हैं। यह परिपाटी सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थभाष्य में भी विस्तारपूर्वक अपनाई गई है।... साधारणतः ये टोकाकार कहीं पूरे सूत्र को उद्धृत करते हैं और कहों उसके एक हिस्से को। पर जितने अंश को उद्धृत करते हैं वह अपने में पूरा होता है। ऐसा व्यत्यय कहीं भी नहीं दिखाई देता कि किसी एक अंश को उद्धृत करते हुए भी वे उसमें से समसित प्रारम्भ के किसी पद को छोड़ देते हों। ऐसी अवस्था में हम तो यही अनुमान करते थे कि इन दोनों टीका ग्रन्थों में ऐसा उद्धरण शायद ही मिलेगा जिससे इनकी स्थिति में सन्देह उत्पन्न किया जा सके। इस दृष्टि से हमने सर्वार्थसिद्धि और तत्त्वार्थभाष्य का बारीकी से पर्यायलोचन किया है। किन्तु हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि तत्त्वार्थभाष्य में एक स्थल पर ऐसा स्खलन अवश्य हुआ है जो इसकी स्थिति में सन्देह उत्पन्न करता है। यह स्खलन अध्याय १ सूत्र २० का भाष्य लिखते समय हुआ है। ____ मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के विषय का प्रतिपादन करने वाला सर्वार्थसिद्धिमान्य सूत्र इस प्रकार है 'मतिश्रुतयोनिबन्धो द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ।' यही सूत्र तत्त्वार्थभाष्य मान्यपाठ में इस रूप में उपलब्ध होता है-- ___ 'मतिश्रुतयोनिबन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ।' तत्त्वार्थभाष्य में सर्वार्थसिद्धिमान्य सूत्र पाठकी अपेक्षा 'द्रव्य' पदके विशेषणरूप से 'सर्व' पद अधिक स्वीकार किया गया है। किन्तु जब वे ही तत्त्वार्थभाष्कार इस सूत्र के उत्तरार्ध को अध्याय १ सूत्र २० के भाष्य में उद्धृत करते हैं तब उसका रूप सर्वार्थसिद्धिमान्य सूत्रपाठ ले लेता है । यथा____'अत्राह-मतिश्रुतयोस्तुल्यविषयत्वं वक्ष्यति-'द्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु' इति' कदाचित् कहा जाय कि इस उल्लेख में से लिपिकार की असावधानी१. देखें-सर्वार्थसिद्धि, पं० फूलचन्दजी सिद्धान्तशास्त्री प्रस्तावना पृ० ४४-४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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