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________________ तत्त्वार्यसूत्र और उनकी परम्परा : २५ जैन आगम समन्वय' में तत्त्वार्थ के पाठों का आगमिक आधार प्रस्तुत करते हुए इसे श्वेताम्बर परम्परा की ही कृति माना है । ' श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के सागरानन्द सूरीश्वर जो ने तत्त्वार्थसूत्र के कर्ता श्वेताम्बर हैं और सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ संशोधित है, यह सिद्ध करने के लिए ९६ पृष्ठों की एक पुस्तक ही लिख डाली है। यद्यपि श्वेताम्बर और दिगम्बर विद्वानों का यह आग्रह उचित नहीं है। तत्त्वार्थसत्र और उसके लेखक उस मूल धारा के है, जिससे इन विभिन्न परम्पराओं का विकास हुआ है। ___ तत्त्वार्थसूत्र श्वेताम्बर परम्परा की कृति है, इसे सिद्ध करने के लिए पं० सुखलाल जी आदि श्वेताम्बर विद्वानों ने जो तर्क दिए हैं उन्हें संक्षेप में निम्न रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है १. तत्त्वार्थसूत्र के मूल पाठों की रचना श्वेताम्बर मान्य आगमों के आधार पर हुई है, अतः तत्त्वार्थ श्वेताम्बर परम्परा का ग्रंथ है। तत्त्वार्थ के मूलपाठ श्वेताम्बरमान्य आगम साहित्य के कितने निकट है, इसे आचार्य आत्मारामजीकृत 'तत्त्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय' नामक ग्रन्थ में स्पष्ट किया गया है। इससे ऐसा लगता है कि तत्त्वार्थसूत्र और उसके कर्ता श्वेताम्बर आगमिक परम्परा के हैं। २. तत्त्वार्थसूत्र के भाष्यमान्य पाठ में गति की अपेक्षा से त्रस और स्थावर का जो वर्गीकरण उपलब्ध होता है वह प्राचीन जैन आगम आचारांग, उत्तराध्ययन, जीवाभिगम आदि के अनुकूल है। अतः भाष्यमान्य पाठ प्राचीन भी है और आगमों से प्रमाणित भी होता है। इस आधार पर भो उसे श्वेताम्बर आगमिक परम्परा का माना जा सकता है। ३. भाष्यमान्य पाठ में 'कालश्चेके' जो सूत्र मिलता है वह भी प्राचीन आगमिक परम्परा का अनुसरण करता है क्योंकि श्वेताम्बर मान्य आगमों १. तत्त्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय, उपध्याय आत्माराम जी, प्रस्तावना सम्मति पत्र, पं० हंसराज जी पृ० ३ । २. श्री तत्त्वार्थकतन्मतनिर्णय, सागरानन्दसूरीश्वर, ऋषभदेव केसरीमल श्वेताम्बर संस्था रतलाम-सम्पूर्णग्रन्थ पठनीय है । ३. देखें-तत्त्वार्थसूत्र जैनागम समन्वय, इसमें तत्त्वार्थ के सूत्रों के नीचे ससंदर्भ आगमिक पाठ दिय गये हैं। ४. देखें-श्रमण, अप्रैल-जन १९९३ प्राचीन जैन साहित्य में 'स-स्थावर वर्गी करण', लेखक-डॉ० सागरमल जैन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003603
Book TitleTattvartha Sutra aur Uski Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1994
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tattvartha Sutra, History, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size8 MB
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