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१० : तत्त्वार्थ सूत्र और उसकी परम्परा
नहीं है, जो कुन्दकुन्द या उनकी अन्वय का उल्लेख करता हो । लगभग १०वीं शती तक कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के निर्देश या उन पर टीका की अनुपस्थिति भी यही सूचित करती है कि कुन्दकुन्द छठी शताब्दी के पूर्व तो किसी भी स्थिति में नहीं हुए हैं, इस तथ्यको प्रो० मधुसूदन ढाकी ' और मुनि कल्याणविजय जी ने अनेक प्रमाणों से प्रतिपादित किया है । जबकि उमास्वाति किसी भी स्थिति में तीसरी या चौथी शताब्दी से परवर्ती सिद्ध नहीं होते हैं ।
वस्तुतः कुन्दकुन्द एवं उमास्वाति के काल का निर्णय करने के लिए { कुन्दकुन्द एवं उपास्वाति के ग्रन्थों में उल्लिखित सिद्धान्तों का विकासक्रम देखना पड़ेगा | यह बात सुनिश्चित है कि कुन्दकुन्द के ग्रन्थों में गुणस्थान और सप्तभंगी' का स्पष्ट निर्देश है । गुणस्थान का यह सिद्धान्त समयांग के १४ जीव-समासों के उल्लेखों के अतिरिक्त श्वेताम्बरमान्य आगम साहित्य में सर्वथा अनुपस्थित है, यहाँ भी इसे श्वेताम्बर विद्वानों प्रक्षिप्त ही माना है । तत्त्वार्थसूत्र और उसके भाष्य में भी इन दोनों सिद्धान्तों का पूर्ण अभाव है, जबकि तत्त्वार्थसूत्र की सभी दिगम्बर
Felicitiation Vol. I, P. V. Research Institute Varanasi English Section, M. A. Dhaky, The Date of Kundakunda - carya p. 190.
Ibid p. 189-190.
२. श्री पट्टावलीपराग संग्रह, मुनि कल्याणविजय जी, पृ० १००-१०७ । ३. ( अ ) गुणठाण मग्गणेहि य पज्जत्तीपाणजीवठाणेहि । ठावण पंचविहेहिं पणयव्वा अरहपुरिसस || तेरहमे गुणठाणे सजोइ केवलिय होइ अरहंतो । चउतीस अइसयगुणा होंति हु तस्सद्वपडिहारा ॥
-- बोधपाहुड ३१-३२
(ब) जीव समासाई मुणी चउदसगुणठाणामाइ ॥ - भावप्राभृत ९७
( स ) णेव य जीवठाणा ण गुणठाणा य अत्थि जीवस्स । - समयसार ५५ (द) णाहं मग्गठाणो णाहं गुणठाण जीवठाणो ण । —नियमसार ७८
४. सिय अस्थि गत्थि उहयं अव्वत्तन्त्रं पुणो य तत्तिदयं ।
दव्वंखु सत्तभंगं आदेसवसेण संभवदि ॥ - पंचास्तिकायसार १४
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