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कृष्णमूर्ति, निकम गुरुजी, कैवल्यधाम, योगनिकेतन मेरी लेखनी के प्रेरणा-स्रोत बने। परमेश्वर तथा अनेक पवित्र आत्माओं का वरदान मेरे साथ था। ____योग और ध्यान ने मेरे जीवन को संवारा। इस कारण, इसी विषय को लेकर मैंने पीएच.डी. की। योग एक विज्ञान है। योग यथार्थ सत्य और अनुभव पर आधारित है। यह विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है। जब तक तुम उस तत्त्व को नहीं समझ लेते, जो कि स्वधर्म है, स्वभाव है, जो निकट से भी निकटतम है, तब तक तुम कैसे दूसरे विषयों को समझ सकते हो? अगर व्यक्ति स्वयं को नहीं जानता है, तो अन्य सभी बातें भ्रांतिपूर्ण ही होंगी।
व्यक्ति को स्वयं के भीतर जाना होता है और ध्यान की पूरी प्रक्रिया एक तीर्थयात्रा है, अन्तर्यात्रा है। जो शरीर और मन के पार है, वही हमारा स्वभाव है और वही अस्तित्व का केंद्र भी है। बीज तुम्हारे भीतर विद्यमान है। बीज को केवल सम्यक् भूमि, मिट्टी और खाद-पानी की आवश्यकता है। बीज को तुम्हारे ध्यान की, साधना की आवश्यकता है, जो कि एक सुंदर सुमन की निर्मिति करता है। योग और ध्यान एक नौका है, उस किनारे तक ले जाने के लिए, जहाँ हमारा चित्त निर्मल होकर आत्मा में लीन हो जाए। व्यक्ति जब समस्याओं से घिर जाता है, तब उसके लिए सोचना आवश्यक हो जाता है कि वह अपने चित्त को किस प्रकार शान्त रखे और समस्या का हल निकाले।
चित्त-प्रवाह को किसी एक पवित्र ध्येय के साथ जोड़ना तथा विषयजगत् की ओर धावमान् इन्द्रिय-समूह को एक दिशागामी बनाना ध्यान का मूलभूत उद्देश्य है। ध्यान का प्रमुख विषय आत्मा और उसका निकटतम सहयोगी मन है। इस अन्तर्यात्रा का प्रथम चरण मानसिक है और अन्तिम आत्मदर्शन । आत्मा, यानी स्वस्वरूप तथा अनात्म, यानी परवस्तु । वास्तविक रूप में ये दोनों परस्पर भिन्न
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ध्यान दर्पण/7
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