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________________ मनोगत संसार में सभी प्राणी सुख और शान्ति की कामना करते हैं, आत्मानुभूति की अभीप्सा रखते हैं, लेकिन आज का आधुनिक समाज भीषण भौतिकवाद के तले दबकर दुःख की ही अनुभूति कर रहा है। सर्वत्र आतंक, भय, भ्रष्टाचार एवं उत्तेजना का वातावरण विद्यमान है। हम अनन्त सुख के स्वामी होकर भी दुःख तथा तनाव के महासागर में डूबते जा रहे हैं। इन समस्याओं का समाधान बाह्य तथा भौतिक साधनों में संभव नहीं है। हम कौन हैं ? हमारा स्वरूप क्या है ? आदि प्रश्नों के उत्तर की खोज में जब हम अपनी प्राचीन समृद्ध परम्परा की ओर झाँकते हैं, तो वहाँ हमें एक सुदृढ़ परम्परा मिलती है, एक सशक्त मार्ग मिलता है - दुःख-विमुक्ति का, स्वयं को पहचानने का। वह मार्ग है- ध्यान का मार्ग। आध्यात्मिक-साधक सत्य का अन्वेषी होता है। वह अपने चारों ओर विकीर्ण सूक्ष्म सत्यों को जानने के लिए चेतना के सूक्ष्मतम स्तरों से गुजरता है। सत्य को पाने से पहले वह अपनी ही खोज के लिए समर्पित होता है। अन्तश्चेतना की अन्वेषणा में वह अपनेआपको मिटा देता है। इससे उसकी चेतना के केंद्र में एक व्यापक विस्फोट होता है और वह आत्म-साक्षात्कार के अनिर्वचनीय आनन्द में डूब जाता है। उनकी समस्त प्रज्ञा जाग्रत हो जाती है। मुझे बचपन से ही यही लगता था कि सत्य कुछ और है। इसी कारण हर किसी को पूछती थी कि भगवान कहाँ है ? कैसा है ? पर मुझे कोई भी बता न सका। समय के साथ उम्र बढ़ती गई और प्रश्न वैसे ही मन में दबे रहे। मेरी माँ बहुत धार्मिक थी। इस कारण बचपन से ही मैंने अनेक व्रत, उपवास, मौन-साधना आदि किए, पर उनका अर्थ नहीं जानती थी और उनके सम्बन्ध में कुछ पूछने की हिम्मत भी नहीं होती। श्रद्धा बहुत थी, पर राह न मिली। ध्यान दर्पण/5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003602
Book TitleDhyan Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaya Gosavi
PublisherSumeru Prakashan Mumbai
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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