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आशीर्वाद
दर्पण ध्यान का प्रतीक है । यदि चित्त दर्पण जैसा बन जाता है, तो उसमें कोई प्रतिबिम्ब स्वतः नहीं उभरता, क्योंकि दर्पण तटस्थ है । जो भी सामने आता है, उसे प्रतिबिम्बित करता है ।
जब जीव राग-द्वेष से ज्ञेय को देखता है, तो वह ज्ञान धुंध ला या दूषित हो जाता है, इसलिए केवल देखना सीखें, केवल सुनना सीखें, तब वह निर्मल ध्यान बन जाता है ।
'चलं चित्तं नाणं, थिरं चित्तं झाणं । ध्यान दर्पण में डॉ. श्रीमती विजया गोसावी ने सरलता से इसी सच्चाई को व्यक्त किया है, इसलिए वह धन्यता की पात्र है। हमारे पूरे संघ का आशीर्वाद उनके साथ है।
दिनांक : 03.11.2008
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मुनि किशनलाल
प्रज्ञा शिखर लाडनूँ (राज.)
ध्यान दर्पण / 3
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