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ध्यान की महिमा
आध्यात्मिक-जगत् में प्रवेश करना हो, तो ध्यान एक सशक्त प्रभावशाली माध्यम बन सकता है। जब तक स्व का शोधन और संशोधन नहीं होगा, तब तक आत्मा और परमात्मा की उपलब्धि भी नहीं हो सकेगी।
ध्यान से आत्मा की शुद्धि, कषाय की मंदता, एकाग्रता, तनाव से बचाव तथा आत्मदर्शन संभव है। ध्यान के साथ वैराग्य
और ज्ञान की नितान्त आवश्यकता है। अगर सिर्फ ध्यान का प्रयोग करोगे, तो सफलता संभव नहीं, परन्तु आत्मज्ञान हो और तीव्र वैराग्य भी उसके साथ हो, तो साध्य तक पहुँच जाओगे। जिस तरह अकेला ज्ञान सफलता प्राप्त करने में सक्षम नही है, उसी तरह अकेला ध्यान भी सक्षम नहीं है।
हमारे सामने ध्यान का स्वरूप और ध्यान का प्रयोजन स्पष्ट होना चाहिए। स्वरूप और प्रयोजन की स्पष्टता से ध्यान की अभिरुचि उत्पन्न होती है, ध्यान की दिशा में गति करने का संकल्प जगता है। ध्यान का विकास पुरुषार्थ के बल से होता है। जब-जब ध्यान का प्रयोग चले, तब-तब आपका चित्त एकाग्र रहे, ऐसा सम्पूर्ण अभ्यासकाल में चलता रहे। इतनी तन्मयता
और लगन हो जाए कि लक्ष्य तक पहुँचा जाए, तो अतीन्द्रिय चेतना के जागरण की अनुभूति हो सकती है। एक बार अनुभूति हो जाए, तो फिर किसी उपदेश की जरूरत नहीं होती है।
एक शांत समुद्र और एक तूफानी समुद्र है। तूफानी समुद्र में कोई व्यक्ति अपना मुंह देखना चाहे, तो भी दिखाई नहीं देगा।
जब तूफान नहीं, तरंगें नहीं, ऊर्मियां नहीं, कल्लोल नहीं,
ध्यान दर्पण/11
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