________________
१.
३.
५.
७.
प्रेक्षा- ध्यान के अंग
कायोत्सर्ग
श्वास- प्रेक्षा
चैतन्य - केन्द्र - - प्रेक्षा
भावना
२.
४.
६.
८.
१. कायोत्सर्ग
ध्यान का अर्थ है- प्रवृत्ति का निरोध । प्रवृत्तियां तीन हैंकायिक, वाचिक और मानसिक । इन तीनों का निरोध करना ध्यान है । फलतः, ध्यान के भी तीन प्रकार हो जाते हैंकायिक-ध्यान, वाचिक - ध्यान और मानसिक - ध्यान । कायिकध्यान ही कायोत्सर्ग है।
Jain Education International
अन्तर्यात्रा
शरीर- प्रेक्षा
लेश्या - ध्यान
अनुप्रेक्षा ।
कायोत्सर्ग का अर्थ है- शरीर का व्युत्सर्ग और चैतन्य की जाग्रति । प्रयोग में इसका अर्थ है- शरीर की बाह्य स्थूल प्रवृत्तियों का निरोध। सभी ऐच्छिक (कंकालीय) मांसपेशियों की शिथिलता एवं चयापचय जैसी सूक्ष्म आंतरिक क्रियाओं का शिथिलीकरण । इस शारीरिक- स्थिति में मानसिक तनाव का विसर्जन होता है।
कायोत्सर्ग, शरीर की स्थिरता - मानसिक एकाग्रता की पहली शर्त है । चित्त की स्थिरता के लिए शरीर की स्थिरता अनिवार्य है, इसलिए प्रेक्षा- ध्यान का पहला चरण कायोत्सर्ग है, जो सभी प्रकार से किए जाने वाले प्रेक्षा- ध्यान के प्रारंभ में ही किया जाता है।
पूरे शरीर का कायोत्सर्ग करने के बाद स्वरयंत्र का
For Private & Personal Use Only
ध्यान दर्पण / 119
www.jainelibrary.org