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“आचार्य महाराज के शरीर पर सर्प लिपटा था, किंतु उसने कुछ उपद्रव नहीं किया, . इसका कारण यह है कि यदि अंतरंग में निर्मलता है, तो बाहर वाले में भी निर्मलता आ ही जाती है, इसलिए वह सर्प अभिभूत हुआ ।”
- आचार्य वीरसागरजी महाराज
धर्म संरक्षिणी
वातावरण
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श्री
कोबा (गांधीनगर)
चि.३८२००९
धीर जैन आय
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