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________________ ॥ श्री शांतिसागर स्तवन ॥ ( परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा रचित आचार्य श्री का स्तवन ) (बसन्ततिलका छन्द) 'मैसूर राज्य' अविभाज्य, विराजता औ, शोभामयी- नयन मन्जु सुदीखता जो । त्यों शोभता, मुदित भारत मेदिनी में, ज्यों शोभता, मधुप - फुल्ल सरोजिनी में ॥ १ ॥ है 'बेलगाँव' सुविशाल जिला निराला, सौन्दर्य - पूर्ण जिसमें पथ हैं विशाला । अभ्रंलिहा परम उन्नत सौधमाला, जो है वहाँ अमित उज्जवल औ उजाला ॥ २ ॥ है पास 'भोज' इसके नयनाभिराम, राकेन्दु सा अवनि में लखता ललाम । श्रीभाल में ललित कुंकुम शोभता ज्यों, भोज भी अवनि मध्य सुशोभता त्यों ॥ ३ ॥ - fit faye निर्मल नीर वाली, हैं भोज में सरित दो सुपयोज वाली । विख्यात है इक सुनो वर 'दूध गंगा', दूजी अहो ! सरस शान्त सु 'वेदगंगा ॥ ४ ॥ श्रीमान् महान् विनयवान् बलवान् सुधीमान्, श्री 'भीमगौड़' मनुजोत्तम औ दयावान् । सत्यात्म थे, कुटिल आचरणज्ञ ना थे, भोज में कृषि कला अभिविज्ञ वा थे ॥ ५ ॥ नितिज्ञ थे, सदय थे, सदय थे, सुपरोपकारी, पुण्यात्म थे सकल मानव हर्षकारी । जो लीन धर्म अरू अर्थ सुकाम में थे, औ वीरनाथ वृष के वर भक्त यों थे ॥ ६ ॥ श्री भीमगौड़ ललना अभि सत्यरूपा, थी काय कान्ति जिसकी रति - सी अनूपा । सीता समा, गुणवती, वर नारि रत्ना, जो थी यहाँ नित नितान्त सुनीतिमग्ना ॥ ७ ॥ नाना कला निपुण थी मृदुभाषिणी, थीं, शोभावती मृगदृगी गतमानिनी थी 1 लोकोत्तरा छविमयी तनवाहिनी थी, सर्वसहा - अवनि - सी समतामयी थी ॥ ८ ॥ मन्दोदरी सम सुनारि सुलक्षिणी थी, श्री प्राणनाथ मद आलस - हारिणी थी । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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