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________________ आचार्य श्री की पं. तनसुखलालजी काला के प्रति विश्वसनीयता को दर्शाता पं. सुमेरूचंद्रजी दिवाकर का पत्र (पत्र का अगला भाग) वीतरागाय नमः विद्वत्रत्न इमेरुचंद्र दिवाकर शास्त्री fकर सदन बी. ए., एल एल. बी., धर्म दिवाकर न्यायतीर्थ सिवनी (म.प्र.) -भाई मणिकचन्द जी जायाजनेन् । आज आपका पत्र मिला । आगम प्राण एवं धर्म पक्ष के रीज वयोव समाजनेना. तनसुखलाबजी का निधन सातकर व हुमा । स्वर्गीय आनायब्धान्तसागर महाराज. के अत्यन्त वे विरवासपात्र रहे । से निरजनलाल जी और इन्होंने मिलकर आमिार्ग का राण किया । वे जभीक और ओजस्वी वक्त धेस जमाने में बम और समाज की सेवा करने वाले असावाल व्यक्तियों में उनका गौरवपूर्ण स्थान पाइन्होंने संयम के द्वारा अपने शान को भलंकृतकर मनुष्यजन्म को कृतार्थ किया। धार्मिक पक्ष की अष्ठ से हम और वे एक परिवार के व्याकरहे (आज उस तेजस्वी सम्यक श्रठा सम्पब सत्पुरुष के स्वर्गवासी / . भारत INDIA t .... .. (पत्र का पिछला भाग) बनने के कारण समाज की भकथनीय क्षाई उनका निर्मल जीवन धन्य था यमस्य करुणा जास्त । सू सिद्धान्त के अनुसार सव्येक व्याकी को कर यमराज का ग्रास होना होगा जिनेन्द्र भाकी आपके आदियान से श्री माणिकवन्य काला एवावें ।यही सुझाव ४,यही प्रचना & Co अभय कुमार काला a झापका शुभचिन्तक I/A17 गाजावाबा अपार्टमेन्ट M.B. Road P.५०००92, Boribgli Bombay (West) सु, दिवाकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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