SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 733
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६६ श्रमण संस्कृति के द्योतक ४२ बिंदु.... एक नहीं है, अर्थात् जुदे-जुदे हैं। (६) साहित्य संख्या व संज्ञा की अपेक्षा :- जैनागम में बारह अंग तथा चौदह पूर्वो का वर्णन है। हिंदु शास्त्रों में उनका कहीं नामोल्लेख भी नहीं है। (७) आराधना स्थलों की अपेक्षा :- जैनों के तीर्थक्षेत्र एवं अतिशय क्षेत्र आदि ही नहीं, अपितु पुरातत्त्व विभाग द्वारा खोजी गई व संरक्षित गुफायें भी हिंदुओं की गुफाओं आदि से सर्वथा जुदे हैं।(इनमें पुरातात्त्विक धरोहरों व शिलालेखों को सम्मिलित कर अर्थ ग्रहण करना चाहिये। (८) अनुयायियों द्वारा मान्य धार्मिक अनुष्ठानों की अपेक्षा :- जैनों में षोडशकारण, दशलाक्षणिक, आष्टान्हिक, रत्नत्रय आदि पर्व माने हैं, हिंदुओं के पर्व इनसे बिल्कुल जुदे हैं। (६) सामान्य अथवा मूल मान्यताओं की अपेक्षा :- जैनी लोग ईश्वर को सृष्टी का कर्ता नहीं मानते, जबकि हिंदु ईश्वर को सृष्टि निर्माता, पालन कर्ता तथा संहारकर्ता मानते हैं। (१०) तत्त्व प्ररूपणा अर्थात् विषय वस्तु को प्ररूपित करने की शैली की अपेक्षा :- जैनी स्याद्वादी (अनेकान्तवादी) हैं, जबकि शेष सभी धर्म एकांतवादी हैं। (११) अनुयायियों की मूल मान्यता अथवा मानस की अपेक्षा :- जैन शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक आत्मा पुरुषार्थ द्वारा ईश्वर (परमात्मा) बन सकता है, जबकि हिंदुओं की वैसी मान्यता नहीं है। (१२) अनुयायियों द्वारा पालित एवं लोक में जैनियों के लिये मान्य कुलगत संस्कारों की अपेक्षा(१):- जैन रात्रि में भोजन नहीं करते, हिंदु रात्रि में भोजन करते हैं। (१३) अनुयायियों द्वारा पालित एवं लोक में जैनियों के लिये मान्य कुलगत संस्कारों की अपेक्षा(२):- जैन लोग मद्य, मांस, मधु एवं कंद आदि के सेवन करने को महापाप समझते हैं, हिंदु वैसा नहीं मानते। (१४) अनुयायियों द्वारा पालित एवं लोक में जैनियों के लिये मान्य कुलगत संस्कारों की अपेक्षा(३):- जैन पानी छानकर ही पीते हैं, हिंदुओं को उसका कोई नियम नहीं है। (१५) अनुयायियों द्वारा पालित एवं लोक में जैनियों के लिये मान्य कुलगत संस्कारों की अपेक्षा(४) :- जैन लोग किसी भी जीव का घात नहीं करते, यहां तक कि चींटी, मकोडा, डांस, खटमल, मच्छर वनस्पति आदि एकेन्द्रिय जीव की भी रक्षा करते हैं। बिच्छू, सर्प, सिंह, व्याघ्र आदि हिंसक जीव को भी वे कभी नहीं मारते, जब कि हिन्दू लोग उनका घात करने में कोई पाप नहीं समझते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy