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________________ शका: क्या सिद्ध परमेष्ठी का ध्यान लेट कर किया जा सकता है ? समाधान : ध्यान के लिये देश, काल व अवस्था अर्थात् आसन का कोई बंधन नहीं है अर्थात् सर्व देशों में. सर्व कालों में व सभी मुद्राओं में ध्यान किया जा सकता है। देखिये श्री धवलाजी, पुस्तक १३, पृष्ठ :६६: सव्वासु वट्टमाणा मुण ओ जं देस कालचेट्ठासु । वरकेवलादिलाहं पत्ता बहु सो खवियपावा ॥१५॥ तो देसकाल चेट्ठाणियमोज्झाणस्स णत्थि समयम्मि। जोगाण समाहाणं जह होई तहा पयइयव्वं ॥२०॥ अर्थ : सब देश, सब काल और सब अवस्थाओं (आसनों) मे विद्यमान मुनि अनेकविध पापों का क्षय करके उत्तम केवलज्ञानादि को प्राप्त हुये॥१५॥ ध्यान के शास्त्र में देश, काल और चेष्ठा (आसन) का कोई नियम नहीं है । तत्तवत: जिस तरह योगों का समाधान हो उसी तरह प्रवृत्ति करनी चाहिये॥२०॥ शंका : इंगिनीमरण किसे कहते हैं व वह किन-किन आसनों में सधता है ? समाधान : इसका उत्तर श्री धवलाजी, पुस्तक १, पृष्ठ २३ से देते हैं : आत्मोपकारसव्यपेक्षं परोपकार निरपेक्षं इंगिनीमरणम्॥ अर्थ - जिस सन्यास में अपने द्वारा अपने पर किये गये उपकार की अपेक्षा तो रहती है, किन्तु दूसरों के द्वारा अपने पर किये गये वैयावृत्य आदि उपकार की अपेक्षा किंचित् भी नहीं रहती, उसे इंगिनीमरण कहते हैं। अब इंगिनीमरण के आसनों को श्री भगवती आराधनाजी से बतलाते हैं : ठिच्चा णिसिदित्ता वा तुवट्टिदृण व सकाय परिचरणं । सयमेव णिरूवसंग्गे कुणदि विहारम्मि सो भयवं ॥२०४१॥ अर्थ : कायोत्सर्ग से खड़े होकर, अथवा बैठकर, अथवा लेटकर एक करवट पर पड़े हुए वे मुनिराज स्वयं ही अपने शरीर की क्रिया करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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