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________________ ब्रह्मचारी बण्डोबा बाबाजी रतू ब्रह्मचारी बंडोबा बाबाजी रत्तू ने बताया कि - "आचार्य शान्तिसागर महाराज के लोकोत्तर व्यक्तित्व ने नेमण्णा नाम के सरल चित्त वाले गृहस्थ को नेमिसागर मुनिराज बना दिया । मण्णा महोदय विलक्षण प्रकृति के व्यक्ति थे । भिन्न-भिन्न धर्म के साधुओं के सम्पर्क में रह चुके थे। एक दिन आचार्य महाराज के जीवन की घटना ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। उस दिन उन्होंने निश्चय किया कि शान्तिसागर महाराज ही ऐसे साधुरत्न हैं, जिनके चरणों को अन्तःकरण में विराजमान कर जीवन भर अभिनन्दन करना चाहिए।" प्रभावप्रद घटना यहाँ सहज ही प्रश्न उठता है कि वह कौन-सी घटना होगी, जिसने जीवन बदल दिया ? ब्र. बण्डू ने बताया- “आचार्य महाराज एक गुफा में बैठ कर आत्म- ध्यान में निमग्न थे। वास्तव में अपने स्वरूप में मस्त बैठे थे। उस समय मकोड़े उनके शरीर पर चढ़कर उनकी पुरुष इन्द्रिय को काट रहे थे । वे मांस खाते थे और रक्त की धारा बहती थी, किन्तु महाराज स्तम्भ की तरह स्थिर थे ।” उनका ध्यान पूर्ण हुआ, तब बाद में नेमण्णा (नेमसागरजी महाराज) ने पूछा - "यह क्या है ?" ब्र. बण्डू रत्तू ने कहा- “ देखते नहीं हो, यह रक्त बह रहा है । " सुनकर महाराज बोले- “कहाँ है रक्त ?” बाद में उन्होंने देखा कि मकोड़े उनके शरीर खा रहे थे। ब्र. बण्डू ने उस मकोड़े को अलग किया था। सामायिक में तल्लीनता उस समय आचार्य महाराज बोले- "हम तो सामायिक में बैठ गये थे। हमको पता नहीं, क्या हुआ ।" यह शब्द सुनकर नेमण्णा ने कहा- "यह क्या चमत्कार है ? यह साधु है या भगवान् है। निश्चय से ये बहुत बड़े साधु हैं।" इस घटना ने उनके मन में प्रबल वैराग्य उत्पन्न किया। वे ही मण्णा आज परमपूज्य १०८ निर्ग्रन्थ मुनि आचार्य नेमिसागर महाराज के रूप में विराजमान रहे । Jain Education International *** For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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