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इकसठ
आमुख अहो जगत के राय मानहु एती बीनती।
छॉडहु पर-परजाय, काहे भूले भरम में॥ इस आध्यात्मिक प्रकाश की उपलब्धि के लिए मनुष्य को अपना अन्तःकरण सम्यग्दर्शन से समलंकृत करना चाहिए। उसे सर्वज्ञ, वीतराग, हितोपदेशी प्रभु का शरण ग्रहण करना होगा। यदि आराध्य विकारों का पुंज होगा, तो उसका आश्रय ग्रहण करने से कैसे कल्याण होगा ? सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्ज्ञान आवश्यक है। इनके साधारण जीवन-प्रवृत्ति आवश्यक है। जैन आगम में इसे रत्नत्रय का मार्ग कहा है। उसकी श्रेष्ठ साधना इस युग में अत्यन्त कठिन है। शारीरिक परिस्थिति, बाह्य वातावरण तथा श्रेष्ठ मनोजय इसके लिए आवश्यक है। आध्यात्मिक प्रकाशप्रद सामग्री दुर्लभ है।
चारित्र चक्रवर्ती श्रमणराज यह भारत का सौभाग्य रहा, कि उसको चारित्र चक्रवर्ती श्रमणराज आचार्य शांतिसागर महाराज नाम के दिगम्बर जैन महर्षि के रूप में आध्यात्मिक ज्योति प्राप्त हुई थीं । उन्होंने श्रेष्ठ अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रहादि की समाराधना की थी तथा ३६ दिन पर्यन्त आहार पान का परित्याग कर उच्च अहिंसा की साधना के हेतु कुन्थलगिरि को जैन तपोभूमि से १८ सितम्बर १६५५ के प्रभात में परलोक-यात्रा की थी। वे चन्द्रमा के समान अत्यन्त शीतल थे तथा सूर्य की भाँति तपस्या के तेज से अलंकृत थे। वह आध्यात्मिक ज्योति लोकोत्तर थी, जिसमें भानु तथा शशि की विशेषताएं केन्द्रित थी। ___ हमने इन श्रमणराज के समाधि लेने के पूर्व उनके पुण्य जीवन पर जो रचना बनाई थी, उसे चारित्र चक्रवर्ती' नाम से प्रगट किया था, क्योंकि वे चारित्ररूपी धर्मचक्र का प्रवर्तन कर रहे थे। उनका जीवन परोपकारपूर्ण समुज्ज्वल प्रवृत्तियों से समलंकृत था। इसके पश्चात् गुरूदेव ने आत्मशुद्धि तथा रत्नत्रय-साधना को अपने जीवन का केन्द्रबिन्दु बनाया था, इसलिए उन्होंने जनसम्पर्क को छोड़कर आत्माराधन के कल्याणपथ को अपनाया था। उन्होंने समाधिशतक' की इस उच्च शिक्षा द्वारा अपने जीवन को अनुशासित किया था
जनेभ्यो वाक् ततः स्पन्दो मनसश्चित्तविभ्रमाः ।
भवन्ति तस्मात्संसर्ग जनैर्योगी ततस्त्यजेत् ॥ ७२ ॥ अर्थ : लोकसम्पर्क होने पर वचनालाप होता है, उससे मानसिक चंचलता होती है और चित्त में विभ्रम होता है, इसलिए योगी जनसम्पर्क का परित्याग करे। ____ वास्तव में वे परमयोगी हो गए थे, जिन्होंने शरीर पोषण से पूर्ण विमुखता धारण कर
आत्मोन्मुखता प्राप्त की थी। उन गुरुदेव ने सल्लेखना के श्रेष्ठ क्षणों में एक बार यह रहस्यपूर्ण बात बताई, कि वे अनन्त सिद्धों की निवासभूमि सिद्धशिला पर चिन्तनशक्ति द्वारा पंहुचकर अपनी आत्मा का ही ध्यान करते थे। अतः उनका जीवन आध्यात्मिक
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