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________________ आचार्य श्री नेमिसागरजीमहाराज आचार्य महाराज तपोमूर्ति थे। उनके शिष्य नेमिसागर महाराज भी बहुत सरल तथा तपःपुनीत जीवन से समलंकृत हैं। कहते हैं कि हजारों लोगों की दृष्टि के समक्ष ही अपने अद्भुत प्रदर्शनों द्वारा जादूगर बड़े-बड़े बुद्धिमानों को भी चकित कर दिया करता है। आध्यात्मिक जादूगर के रूप में आचार्य महाराज ने जिनेन्द्र शासन से पूर्ण विमुख नेमण्णा नाम के कुड़ची के व्यापारी के जीवन को बदल दिया। वे ही परम श्रद्धालु, श्रेष्ठ तपस्वी, अद्वितीय गुरुभक्त १०८ परम पूज्य आचार्य नेमिसागर महाराज के रूप में मुमुक्षुवर्ग का कल्याण करते रहे। उन्हें आचार्य महाराज से मुनिदीक्षा लिए लगभग ४४ वर्ष हो गए। एक उपवास, एक आहार का क्रम प्रारम्भ से चलता आ रहा है। इस प्रकार नर जन्म का समय उपवासों में व्यतीत हआ। उन्होंने तीस चौबीसी व्रत के ७२० उपवास किए। कर्मदहन के १५६ तथा चारित्रशुद्धि व्रत के १२३४ उपवास किए। दशलक्षण में पाँच बार दस-दस उपवास किए। अष्टाह्निका में तीन बार आठ-आठ उपवास किए। इस प्रकार २४ उपवास किए। लोणंद में महाराज नेमिसागरजी ने सोलहकरण के सोलह उपवास किए थे। इस प्रकार उनकी तपस्या अद्भुत रही है। दो, तीन, चार उपवास तो जब चाहे, तब करते थे। __ अज्ञानी विषयासक्त संसारी खाने-पीने में मजा मानता है। चारित्र चूड़ामणि नेमिसागर महाराज को उपवास में आनंद आता है। बिना आत्मानंद के कौन अपने ४४ वर्ष के साधुजीवन के बहुभाग को उपवासों में व्यतीत करता? अन्य साधुओं में भी उपवास की प्रवृत्ति पाई जाती है, किन्तु उन लोगों में भी विश्व की दृष्टि से सोचा जाय, तो नेमिसागर महाराज के सामने खड़े होने वाला एक भी व्यक्ति न मिलेगा। तपस्या के क्षेत्र में दिगम्बर जैन साधुओं में इस समय ये ही शिरोमणि हैं। भौतिक विकास के कारण अहंकार के ज्वालामुखी पर नग्न-नर्तन करने वाले देशों के समक्ष भारत, नेमिसागर महाराज सदृश विभूति को ही उपस्थित कर सकता है और पूछ सकता है कि तुम्हारे पास ऐसी ज्योतिर्मयी मूर्ति है क्या? कौन उत्तर देगा? जड़वाद के राक्षस के पादार्चन करने वाले राष्ट्र क्या उत्तर देंगे? भारत में भी अन्य लोग अपने हृदय पर हाथ रखकर सोचें कि उनमें शान्त भाव, आत्मचिंतन, पवित्र साधनापूर्वक हजारों उपवास करने वाली नेमिसागर महाराज सदृश निष्कलंक चारित्र वाली कोई अन्य विभूति है क्या? कौन उत्तर देगा? कोई हो, तो उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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