SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चारित्र चक्रवर्ती कि शायद बड़े महाराज के स्वर्गगमन के बाद तुम हमें भूल गये होगे।" मैंने कहा- “महाराज ! आपको कैसे भूल सकता हूँ ? प्रतिदिन अभिषेक तथा पूजा के समय आपके पवित्र चरणों को परोक्ष रूप से अर्घ दिया करता था। आज आपको साक्षात् देखकर मेरे नेत्र धन्य हो गये । भारत के बाहर जापान आदि देशों में अवश्य गया था, किन्तु आप सदृश गुरु के चरण मुझे वहाँ भी याद आते थे। अनेक जापानी मित्रों को, भाइयों और बहिनों को, आपकी फोटो बतलाता था और कहता था कि सौ के समीप वय वाले वर्धमान महाराज की अप्रतिम, नैसर्गिक सौन्दर्यसम्पन्न छवि को देखो। लोग देखकर हर्षित होते थे। उनके चहेरे पर विस्मय का भाव आ जाता था। इतनी अवस्था में वस्त्र आदि साधनों से रहित, चौबीस घण्टे में एक बार खड़े होकर अपने हाथों की अंजुलि में विशेष नियमों के साथ आहार-ग्रहण करने वाले नररत्न आज भी जगत् में विद्यमान हैं, यह सचमुच में बड़े अचरज की चीज दिखती है। संदेश प्रश्न-“आचार्य महाराज ने सल्लेखना के काल में आपको कोई अपना विशेष सेंदेश भेजा था ? प्रार्थना है कि उस पर थोड़ा प्रकाश डालें।" उन्होंने कहा- “महाराज ने कहा था कि निरन्तर आत्मा का ध्यान करना। आर्तध्यान मत करना। इसी प्रकार आत्म-चिन्तवन में लगे रहना, जैसे भरत महाराज उसमें लगे रहते थे। आत्मा का ध्यान करो। लगातार आत्मा का ध्यान होगा नहीं, इसलिये शुभ कार्यों में भी लगे रहना।" उन्होनें कहा-“अब हमारा शरीर बहुत कमजोर हो गया है। उसमें शक्ति नहीं रही है, किन्तु वृद्ध शरीर में स्थित आत्मा में शक्ति है। कभी-कभी सारी रात ध्यान में बीत जाती है। तीन घंटे तक तो सहज ही ध्यान में बैठ जाता हूँ। यह आत्मशक्ति का फल है।" प्रश्न- “महाराज ! आप ध्यान कब करते हैं? मेरा अभिप्राय रात्रि के समय से है।" उत्तर- "हम रात को १२ बजे ध्यान को बैठ जाते हैं और करीब तीन घंटे तक आत्मचिंतन तथा आत्मध्यान में संलग्न रहते हैं।" प्रश्न-“महाराज ! शरीर आपको कष्ट देता है या नहीं ?" उत्तर-“व्यवहारदृष्टि से यह कष्ट देता है, निश्चय से वह हमारा क्या बिगाड़ सकता है ? अब हम आत्मशक्ति से ही काम लेते हैं, अन्यथा बाहर शौच को जाने की भी शक्ति अब शरीर में नहीं है।" अपूर्व केशलोंच ता. १८ फरवरी सन् १९५७ को उन्होंने केशलोंच किया। दूर-दूर से आये हजारों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy