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________________ ४१५ चारित्र चक्रवर्ती इस कारण अज्ञ प्राणी भी 'णमो अरिहंताण' के जप द्वारा कल्याण को प्राप्त करता है । सुभग नाम के गोपाल ने 'णमो अरिहंताण' की जापमात्र से सुदर्शन सेठ के रूप में जन्म धारण कर मोक्ष प्राप्त किया । इस प्रकार वीतराग भगवान् के नाम में भी अचिंत्य और अपार शक्ति है। पूजा में आह्वान आदि का रहस्य प्रश्न- "आचार्य परमेष्ठी या साधु परमेष्ठी के प्रत्यक्ष होते हुए उनका आह्वान आदि करना कैसे उचित होगा ?" उत्तर-“आह्वान आदि तन्दुल में नहीं किया जाता। पूजक अपने मन में उक्त आह्वान आदि करता है । " पाप द्वारा पतन पाप के द्वारा ऊँचे आसान पर अधिष्ठित व्यक्ति भी अवर्णनीय कष्ट को भोगता है। इस विषय में महाराज ने दक्षिण के एक भट्टारक के बारे में यह बताया था कि हीन आचरण के कारण उनके शरीर में कीड़े पड़ गये थे। शरीर से असह्य दुर्गन्ध निकलती थी। मरने पर उस कमरे में घुसने की कोई हिम्मत नहीं करता था, जहाँ मृत शरीर पड़ा था। एक शीशी चन्दन का तेल वहां छिड़का गया। लोगों ने नाक में पट्टी बांधी और अपने शरीर में चंदन का तेल खूब लगाकर बड़ा साहस कर उस शरीर को बाहर निकाला था। पापोदय की ऐसी स्थिति होती है। विदेह में द्रव्य मिथ्यात्व नहीं है प्रश्न- "विदेह में मिथ्याधर्म का सद्भाव नहीं कहा है, इसका क्या कारण है ?" उत्तर- "विदेह में द्रव्य मिथ्यात्व नहीं है। कारण, वहाँ विद्यमान तीर्थंकर द्वारा मोक्ष का सच्चा मार्ग बताया जाता है। वहाँ नित्य चतुर्थ काल रहता है, इसलिये जैसे कालपरिवर्तन के कारण भरतादिक क्षेत्र में द्रव्य मिथ्यात्व की उत्पत्ति होती है, वैसा वहाँ नहीं होता । भरतादि क्षेत्र में उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी के परिवर्तनवश मिथ्याधर्मों का आविर्भाव और विलय हुआ करता है । " मार्मिक समाधान प्रश्न- "कूट लेख क्रिया को किस प्रकार अतीचार कहा जायगा ?" उत्तर-“जैसे आजकल राजकीय कानून के प्रहार से बचने के लिए गृहस्थ देता है हजार रुपया, किन्तु रसीद लिखवाता है उससे अधिक की, ताकि कचहरी में मुकदमा करने में असल रकम आपत्ति से मुक्त रही आवे । व्रती गृहस्थ का भाव धन के अपहरण का नहीं है, किन्तु कार्य तद्रूप सा दिखता है, इससे इसे अतीचार कहा है। यदि वह गृहस्थ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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