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छियालीस
चारित्र चक्रवर्ती तुम राम कहो, वह रहीम कहे, दोनों की गरज अल्लाह से है।
तुम दीन कहो, वह धर्म कहें, मंशा तो उसी की राह से है। लोग अपनी भोगलिप्सा की पूर्ति के लिए धर्म तथा उसके आश्रयरूप देवी, देवताओं को उन बातों से अभिभूत बताते हैं, जिन दुर्बलताओं से मोही मानव व्यथित हो रहा है। उदाहरणार्थ, किसी तम्बाखू प्रेमी कविराज ने यह कविता बना दी कि कृष्णमहाराज भो तम्बाखू खाते थे -
कृष्ण चले वैकुंठ को, राधा पकड़ी बाँह ।
यहाँ तमाखू खाय लो, वहाँ तमाखु नाँहि ॥ ऐसा ही काल्पनिक चित्रण अनेक विलासी तथा व्यसनी लोग करते है। भगवान् के नाम पर लोग अपनी विषयलोलुपता की पूर्ति करते हैं। ऐसे कार्य का दुष्परिणाम क्या होगा, यह विलासी लोग नहीं सोचते हैं। गीता (अध्याय १६, श्लोक २१) में नरक अवस्था में जीवात्मा के पतन के त्रिविध तमोद्वारों का इन शब्दों में कथन किया गया है -
विविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः ।
काम : क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत्॥ अर्थ : नरक के तीन द्वार कहे गये हैं- काम, क्रोध तथा लोभ। इनके द्वारा आत्मा का अधःपतन होता है, इससे इन तीनों का त्याग करना चाहिए।
यदि हम शान्त भाव से विचार करें, तो उपरोक्त उक्ति अक्षरशः सत्य प्रतीत होगी। इनमें सर्वोपरि स्थान लोभ का है। जैन पूजा में कहा है-“लोभ पाप का बाप बखाना"। अंग्रेजी में सूक्ति है - "No vice like avarice"। आज भारत राजनैतिक दृष्टि से स्वतन्त्र हो गया है, किन्तु वह लोभ के जाल में फंसकर भयंकर रूप से पराधीन हो गया है। अहिंसा का पुण्य नाम लेने वाला शासन मांसाहार तथा जीव-वध को प्रेरणा देता है। जीववध द्वारा वह धन-संचय करने के पथ में लग रहा है। जीवघात द्वारा धन कमाना धीवर, कसाई आदि का कार्य रहा है। अहिंसावादी शासन जीवघात द्वारा गरीबी दूरकर संपन्नता का स्वप्न देखता है। यह भयंकर भ्रम है। अहिंसावादी रहते हुए गरीबी वरदान है। शीलवती महिला फटे वस्त्रों में रहती हुई भी रत्नालंकृत वेश्या से अच्छी है। शासन अव्यवस्था के द्वारा धन का अपार अपव्यय करता है तथा धन-लाभ के लिए वह धर्मअधर्म की तनिक खबर नहीं रखता है। ___ इस कमाई के नशे में इस देश के सारथीगण यह नहीं सोचते कि बड़े-बड़े राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़कर पापों के कारण पतन के गहरे गर्त में ऐसे गिरे हैं कि उनका पता भी नहीं चलता है। अतः यह जानना जरूरी है कि हिंसा, पापाचार और विलासिता से युक्त यह भौतिक उन्नति का भवन भी बहुत समय तक नहीं टिकेगा। बड़े-बड़े निरामिष परिवार में
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