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________________ २६५ चारित्र चक्रवर्ती अस्तु, फिर उन्होंने फोन किया, तो वहाँ की लाइन में गड़बड़ी हो गई । अब फोन आता है। थोड़ी देर में आता है। ऐसी प्रतीक्षा में एक घंटे से अधिक समय व्यतीत हो गया। कदाचित् फोन मिल जाता तो हम लोगों का दिल्ली पहुँचना शायद स्थगित हो जाता, किन्तु उस भूमि के स्पर्श का निमित्त था अतः अपने ठहरने के स्थान पर आए तो ज्ञात हुआ कि अजमेर से सर भागचन्दजी का हमारे नाम पर फोन आया था । वे दिल्ली के लिए रवाना हो गए तथा हमें और शहा वकील को रात्रि के वायुयान से आने को कहा है। हवाई जहाज का टिकट आ गया। हम रात को डेढ़ बजे रवाना हो गए। प्रभात में ५.३० बजे दिल्ली के वेलिंगडन एरोड्रोम में उतर पड़े । बम्बई शीतल वातावरणयुक्त था और दिल्ली में भीषण गर्मी थी। वहाँ पहुंचकर पता चलाया तो ज्ञात हुआ कि सेठ गजराजजी को कारणवश विलम्ब हो गया है । वे सालीसिटर के साथ ता. १८ के प्रभात में आए। ता. १८ को बैरिस्टर दास से केस पर चर्चा हुई। वहाँ दास बाबू ने कहा कि आप लोगों को तुरंत बम्बई पहुंच कर योग्य साक्षी तैयार करना चाहिए। हाईकोर्ट साक्षी कैसे लेगी ? यदि साक्षी ( evidence) की स्थिति आई, तो न्यायालय इस मामले को नीचे की अदालत में भेजे बिना न रहेगी। यह जानते हुए भी बड़े वकील की बड़ी बात विचार कर ता. १८ की रात्रि को हवाई हा में सीट बुक करने के लिए फोन से बात की, तो ऐरोड्रोम दफ्तर से कहा गया, केवल दो सीटें बाकी है, 'शीघ्रता कीजिए' नहीं तो ता. १६ को सीट मिलेगी । हमने शहा वकील से कहा अपने लिए ही वे स्थान सुरक्षित प्रतीत होते हैं। वायुयान से हमने दिन में ही अनेक बार प्रवास किया है। उसकी दुर्घटनाओं का वर्णन पत्रों द्वारा प्रगट होने से रात्रि के प्रवास के प्रति कुछ कम इच्छा होती थी, किन्तु हमने यही सोचा, धर्म का श्रेष्ठ कार्य करते हुए विपत्ति का क्या भय और यदि कदाचित् वह आई तो श्रेष्ठ सेवा करते रहने में भविष्य की भी भीति नहीं है । दिल्ली में मुनिराज श्री नमिसागर महाराज तथा अन्य महान् तपस्वियों के दर्शन किए। उन लोगों ने आचार्य शांतिसागर महाराज के समान एकादशी को चातुर्मास का निश्चय न कर पूर्णिमा को ही एकत्रित होकर देहली चातुर्मास का निश्चय किया । खूब समुदाय था। आचार्य शांतिसागर महाराज के स्वास्थ्य आदि की बातें सुन कर सबको संतोष हुआ। हमने सबसे यही अनुरोध किया कि धर्मसंकट निवारणार्थ अधिक से अधिक जिनेन्द्र-: द- स्मरण करें। हम लोग मध्य रात्रि को दिल्ली से चलकर विमान में सोते हुए सबेरे ता. १६ को पुनः बम्बई आ गए। अब पेशी को पाँच दिन शेष हैं। कार्य बहुत अधिक था । बम्बई की धार्मिक समाज ने क्षुल्लक सूरिसिंहजी के नेतृत्व में जाप की विशिष्ट विधि चंद्रप्रभु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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