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________________ प्रतिज्ञा २६२ अधिकार दिया गया था। इस सम्बन्ध में जो खर्चा लगेगा, उसे देने की प्रतिज्ञा कलकत्ता निवासी गुरुभक्त सेठ गजराज जी गंगवाल ने आचार्यश्री के समक्ष की थी। हम भी उस समिति के सदस्य थे। ४ सितम्बर, सन् १९४६ कवलाना चातुर्मास के समय महाराज का शरीर १५ मिनट तक ठंडा पड़ गया था। सांस रुक गयी थी। करवट तक बदलना कठिन हो गया था। इससे सारे भारतवर्ष के प्रमुख श्रीमान् तथा धीमान् महाराज के पास पहुंचे थे। उस समय सभी विद्वानों ने आचार्य महाराज के समक्ष कहा था कि “ दिगम्बर जैनशास्त्रों में शूद्रों के जिनमंदिर के भीतर प्रवेश करने की आज्ञा नहीं है।" हड़ताल गुरु चरणों के प्रति भक्ति प्रदर्शित करते हुए १५ अगस्त सन् १९४६ को उनके अन्नत्याग के वर्ष पूर्ण होने पर दिगम्बर जैनसमाज ने भारतव्यापी हड़ताल द्वारा यह स्पष्ट कर दिया था कि बहुसंख्यक जैन वर्ग आचार्य महाराज के चरणों का अनुगामी है। अकलूज कांड होने पर बम्बई के बैरिस्टर सर एन.पी. इंजीनियर, बम्बई के द्वारा दरख्वास्त बनाकर बम्बई हाईकोर्ट में पेश कर दी गयी। उपसमिति के परामर्श के अनुसार हम १० फरवरी सन् १९५१ को पटना में बैरिस्टर पी.आर. दास से उनके निवास स्थान शांतिनिकेतन में मिले। __पटना में परामर्श के उपरान्त प्रस्थान कर हम सेठ गजराजजी श्री तिलकचंद शाह वकील, श्री मणिकचंद्र दोशी वकील, फलटण के साथ प्रभात में पारसनाथ (शिखरजी) पहुंचे। वंदना करके वापिस आये तथा वहाँ होने वाले पंचकल्याणक महोत्सव के ज्ञानकल्याणक समारंभ में सम्मिलित हुए। हजारों लोग उपस्थित थे। उन्होंने हमसे बम्बई मंदिर में प्रवेश कानून के संबंध में की गयी कार्यवाही तथा आचार्य महाराज के स्वास्थ्य इत्यादि के विषय में अपने भाषण द्वारा स्पष्टीकरण की इच्छा व्यक्त की। हमने उदाहरण सहित' सब बातों पर प्रकाश डालते हुए सभी श्रावकों आदि से अनुरोध किया था कि वे जिनेन्द्र भगवान् की आराधना द्वारा धर्मसंकट निवारण के कार्य में बड़ी सहायता कर सकते हैं, क्योंकि जिनेन्द्र की भक्ति १. सर एम. वरदाचार्य : फेडरल कोर्ट के न्यायाधीश सर एम. वरदाचार्य के विषय में सर मारिस ग्वायर, प्रधानन्यायाधीश, फेडरल कोर्ट ने अमेरिकन पत्रकार लुईफिशर से कहा था,"नई दिल्ली में अकेले वरदाचार्य ही एकमात्र राजनीतिकदार्शनिकथे।" उक्त विद्वान् से जबलुई फिशर ने अस्पृश्यता के संबंध में प्रश्न किया, तो न्यायमूर्ति वरदाचार्य ने कहा था, “यदि आपआत्मा के आगमन में विश्वास करते हैं तोआपको मालूम होना चाहिए कि यदि किसी आत्मा ने एकजन्म में कुकर्म किये हैं तो दूसरे जन्म में उसका हरिजनके घर में जन्म हो सकता है।" -लुई फिशर - एक महान् नैतिक चुनौती, पृ. १६८-१६६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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