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प्रभावना
२६४ केशलोंच के दूसरे दिन विहार कर संघ ने शहादरा, खेकड़ा आदि स्थानों में हजारों जीवों का कल्याण करते हुए बड़ौत में धर्मप्रभावना की। वाणीभूषण पं. तुलसीरामजी काव्यतीर्थ, अध्यापक, जैन हाईस्कूल ने आचार्यश्री की स्तुति में एक सुन्दर कविता बना कर संस्कृत में पढ़ी थी। आज बड़ौत का हाईस्कूल विशाल जैन डिग्री कॉलेज के रूप में वृद्धिगत हुआ है। ___ फाल्गुन सुदी तीज को संघ जुहोड़ी आया, पश्चात् मुल्हेड़ा पहुँचा। यहाँ बड़े आनन्द से रथोत्सव हुआ था। हजारों भाई बाहर से आये थे। आचार्यश्री के चरणप्रसाद से समाज में एक्य की वृद्धि हुई। मेरठ
सरधना होते हुए संघ मेरठ आया। यहाँ भी अच्छी धर्मप्रभावना हुई। समाज ने सुन्दर मण्डप बनाया था, जिसमें विराजमान होकर गुरुओं का दिव्य उपदेश जनता ने सुना था।
चैत्र सुदी नवमी को संघ हस्तिनापुर आ गया। हस्तिनापुर क्षेत्र(दान तीर्थ भूमि)
यह स्थान जैनसंस्कृति के प्राचीनतम स्थलों में है। आदि तीर्थंकर भगवान् वृषभदेव छह मास के उपवास के उपरांत विविध स्थानों में विहार करते हुए वैसाख सुदी तृतीया को यहाँ आए थे। उस समय जनता में बड़ी हलचल उत्पन्न हो गई थी। कर्मभूमि के आरम्भ काल में किसी को यह पता नहीं था कि भगवान् मौनरूप से विहार क्यों कर रहे हैं। हस्तिनापुर के नागरिकों को प्रभु के आगमन का जब पता चला, तब लोग कहने लगे, 'भगवान् आदिनाथ प्रभु प्रतीत होता है, हमारे पालन हेतु यहाँ पधारे हैं। चलो, शीघ्र चलकर उन देवाधिदेव का दर्शन करें, तथा भक्ति-पूर्वक पूजा करें।'
कोई-कोई कहते थे कि श्रुति में सुनते हैं कि इस जगत् के पिता यह हैं। हमारे दैव से उनका, सनातन प्रभु का प्रत्यक्ष दर्शन हो गया। इनके दर्शन से नेत्र सफल होते हैं, इनकी चर्चा सुनने से कर्ण कृतार्थ होते हैं। इन प्रभु का स्मरण करने से अज्ञ प्राणी भी पुण्य अन्तःकरण बन जाता है।
इतने में विशाल जनसमुदाय, हस्तिनापुर के नरेश महाराज सोमप्रभ, महाराज श्रेयांस के राजप्रासाद के समक्ष इकट्ठा हो गया। तत्काल सिद्धार्थ नाम के द्वारपाल ने भगवान् का आगमन नरेश बन्धु को विदित किया। क्षणभर में दिगम्बर मुद्राधारी आदिप्रभु का दर्शन हुआ। अक्षय तृतीया
भगवान् के रूप का दर्शन होते ही श्रेयांस महाराज को जातिस्मरण हो गया। अतः
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