SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२८ प्रभावना दूसरी घटना यह हुई कि मधु-मक्षिकाओं के प्रचण्ड आक्रमण से सैन्य दल भी घबड़ा उठा, इससे यह मूर्ति सौभाग्यवशं आज तक सुरक्षित रह सकी। मूर्ति की श्रेष्ठ कला शिल्पी को अमर कर गयी। स्थापत्य कलाविदों के लिए भी कुंडलपुर ऐसा ही तीर्थ है, जैसा कि वह आध्यात्मिक शांति प्रेमियों के लिए वंदनीय पुण्य स्थल है। पर्वत पर प्राकृतिक वातावरण मूर्ति की प्रशांत, दिगम्बर तथा ध्यानम्म्य मुद्रा के आनन्द को अत्यन्त उद्दीप्त कर देता है। मूर्ति को बड़े बाबा के नाम से पुकारते हैं। जन साधारण में बड़े बाबा की भक्ति का चमत्कार अतिशय के नाम से प्रसिद्ध है। मूर्ति में अद्भुत आकर्षण है। एक बार दर्शन करने से जी नहीं भरता, पुनः-पुनः दर्शन करने की पुण्य लालसा जागृत होती है। महाराज छत्रसाल की भक्ति बुन्देलखण्ड के केशरी महाराज छत्रसाल इन भगवान् के बड़े भक्त थे। उनके वंशज पन्ना नरेश आज भी कुंडलपुर को अपनी भक्ति का विशिष्ट स्थल मानते हैं। महाराज छत्रसाल के द्वारा भेंट से अर्पित एक बड़ा थाल मंदिर के भंडार में विद्यमान था। मंदिर के बहिर पर छत्रसाल महाराज के समय का एक शिला-लेख खुदा हुआ है। विक्रम संवत् १७५७ में जो मन्दिर के जीर्णोद्वार के उपरांत महापूजा हुई थी, उस समय उस समारंभ में महाराज छत्रसाल पधारे थे। इस क्षेत्र के संवर्धन के लिए समर्थ श्रीमानों तथा दानवीरों का ध्यान जाना आवश्यक है। आध्यात्मिक प्रवृत्तियों के विकास के लिए यह अपूर्व स्थल है। बड़े बाबा की मनोज्ञ मूर्ति क्रूर, निर्दय, निर्मम मानव में भी पवित्र तथा विशुद्ध भावों को जागृत किये बिना न रहेगी। तिलोयपण्णत्ति में लिखा है कि अननुबद्ध केवली श्रीधर भगवान् का मोक्ष कुंडलगिरि से हुआ था। यही तीर्थ निर्वाण स्थल प्रतीत होता है। इस दृष्टि से कुंडलपुर अतिशय क्षेत्र ही नहीं, निर्वाण भूमि भी है। इस क्षेत्र की वन्दना से संघ को अपूर्व आनन्द तथा बड़ी शांति मिली। आचार्य महाराज के आकर्षण से हजारों जैन यात्री इकट्ठे हो गये थे। फागुन सुदी चौदस को भगवान् का महाभिषेक पूजन हुआ था। धर्मोपदेश, तत्त्व-चर्चा, गुरुदर्शन आदि के द्वारा वह अष्टाह्निका का उत्सव चिरस्मरणीय हो गया। ऐसा महत्वपूर्ण सत्समागम जीवन में फिर सुलभ नहीं है। ___ सबके हृदय में आचार्यश्री के प्रति अगाध भक्ति थी। अतः उन पर संघ के धर्मोपदेशों का अच्छा प्रभाव पड़ा था। जिनके भाव शिथिलाचारी बन रहे थे, उनकी शंकाओं का निराकरण होने से उनकी श्रद्धा सुदृढ़ हुई। यह यात्रा बहुत मंगलदायिनी हुई। अच्छी धर्म प्रभावना हुई। इसके पश्चात् संघ दमोह आया, वहाँ के दर्शन के उपरान्त, वह ओरसा ग्राम गया। वहाँ एक विशिष्ट घटना हो गयी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy