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________________ २०३ चारित्र चक्रवर्ती निकट से उनको देख सकें, ऐसा प्रथम अवसर उत्तर भारतवालों को कटनी में प्राप्त हुआ। आगम भक्त कुछ शास्त्रज्ञों ने सूक्ष्मता से आचार्यश्री के जीवन को आगम की कसौटी पर कसते हुए समझने का प्रयत्न किया। उन्हें विश्वास था कि इस कलिकाल के प्रसाद से महाराज का आचरण भी अवश्य प्रभावित होगा, किन्तु अन्त में उनको ज्ञात हआ कि आचार्य महाराज में सबसे बड़ी बात यही कही जा सकती है कि वे आगम के बंधन में बद्ध प्रवृत्ति करते हैं और अपने मन के अनुसार स्वच्छंद प्रवृत्ति नहीं करते हैं। स्थानीय कुछ लोगों की प्रारम्भ में कुछ ऐसी इच्छा थी कि चातुर्मास का महान् भार कटनी वालों पर न पड़े, किन्तु चातुर्मास समीप आ जाने से दूसरा योग्य स्थान पास में न होने से कटनी को ही चातुर्मास के योग्य स्थान चुनने को बाध्य होना पड़ा। संघपति ने ऐसे लोगों को कह दिया था- “आप लोग चिन्ता न करें, यदि आपकी इच्छा न हो, तो आप लोग सहयोग न देना, सर्व प्रबन्ध हम करेंगे, अब चातुर्मास तो कटनी में ही होगा।" इस निश्चय के ज्ञात होने पर सहज सौजन्यवश प्रारम्भ में उन शंकाशील भाइयों ने महाराज के पास जाना प्रारम्भ किया। उन्हें ऐसा लगने लगा, जिसे हम काँच सरीखा सोचते थे, वह स्फटिक नहीं, वह तो असली हीरा है। श्रावकों की भक्ति उस समय उन्हें अपने भाग्य पर आश्चर्य होता था कि किस प्रकार अद्भुत पुण्योदय से उनकी अनायास ही नहीं, अनिच्छापूर्वक ऐसी अपूर्व निधि प्राप्त हो गई। बस अब उनकी भक्ति का प्रवाह बढ़ चला। जो जितना प्रबल विरोधी होता है, वह दृष्टि बदलने से उतना ही अधिक अनुकूल भी बन जाता है। इंद्रभूति ब्राह्मण महावीर भगवान् के शासन का तीव्र विरोधी था, किन्तु उसने प्रभु के जीवन का सौन्दर्य देखा और उसमें अपूर्व सौरभ और प्रकाश पाया। अतः इतना प्रबल भक्त बन गया कि प्रभु के उपदेशानुसार निर्ग्रन्थ मुनि बन कर भगवान के भक्त शिष्यों का शिरोमणि बनकर गौतम गणधर के नाम से विख्यात हो गया। भावों की अद्भुत गति होती है। अब तो कटनी की समाज में आंतरिक भक्ति का स्रोत उमड़ पड़ा, इससे आनन्द की अविच्छिन्न धारा भी बह चली। बड़े सुख, शांति, आनन्द और धर्मप्रभावना के साथ वहाँ का समय व्यतीत होता जा रहा था। आचार्य चरणों का प्रथम परिचय मैंने भी आचार्यश्री के जीवन का निकट निरीक्षण नहीं किया था। अतः साधु विरोधी कुछ साथियों के प्रभाववश मैं पूर्णतया-श्रद्धा शून्य था। कार्तिक की अष्टाह्रिका के समय काशी अध्ययन निमित्त जाते हुए एक दिन के लिए यह सोचकर कटनी ठहरा कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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