SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 303
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थाटन २०१ वृद्धा की भक्ति आचार्य संघ जंगल के बीच से जा रहा था। एक वृद्धा की दृष्टि साधु महाराज पर पड़ी। उसकी तीव्र इच्छा हुई कि इन बाबा के दर्शन अवश्य करूंगी। महाराज आगे थे, वह लाठी टेकती हुई उस ओर बढ़ती जा रही थी। उसकी दृढ़ता और भक्ति देख संघपति सेठ गेंदनमलजी आचार्यश्री के पास पहुंचे और अर्ज की कि महाराज एक वृद्धा दर्शनार्थ आ रही है, आपके दर्शनों की उसकी बड़ी तीव्र लालसा है। उस समय थोड़ा थोड़ा पानी बरसना प्रारंभ हुआ था, किन्तु फिर भी महाराज कुछ समय को रुक गए और उसके आने पर उसे भद्रात्मा देख आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़े। संध्या हो रही थी, उसी समय दो शिकारी मिले। उन्हें शिकार न खेलने को लोगों ने कहा। आचार्य महाराज के आगमनं की वार्ता सुनाई। महाराज का दर्शन कर बिना शिकार किये वे लोग वापिस चले गए। आचार्यश्री तो महान् आत्मा हैं। उनके प्रभाव से प्रत्यक्ष में हिंसा न हो सकी, यह कौनसी बड़ी बात है? उनके चरण सेवक जिनेन्द्र के वचनों में श्रद्धा शील श्रावकों में बहुत सामर्थ्य पाई जाती है। देहली के स्व. जुगलकिशोर कागजी कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका गए थे। वहा कुछ अमेरिकन साथी इनके द्वारा मछली न मारने की प्रार्थना करने पर भी अपनी आदत से लाचार हो मछली मारने एक सरोवर पर गए। जैन महाशय भी वहां खड़े खड़े जिनेन्द्र का नाम जपते रहे और यही आकांक्षा कर रहे थे कि आज मछलियों को अभय प्राप्त हो। वे इनके जाल में न फंसें। काफी देर तक उन लोगो ने मछली मारने का प्रयत्न किया, किन्तु वह निष्फल रहा आया। उनकी समझ में आ गया कि श्री जैन की करुणामयी प्रार्थना की उपेक्षा करने से वे विफल मनोरथ रहे हैं, अतः उनके चित्त में जैन-बंधु के प्रति विशेष सन्मान की भावना उत्पन्न हो गई। वास्तव में देखा जाय तो जिनेन्द्र के प्रति श्रद्धा रखकर यदि हम काम करें तो अवश्य पवित्र कार्य में सफलता मिलेगी। ******* आचार्य श्री की साधना एक दिन मैंने (७ दिसंबर सन् १९५१ के) सुप्रभात के समय आचार्य महाराज से पूछा था-"महाराज! आजकल आप कितने घंटे जाप किया करते हैं ?" महाराज ने कहा था - रात को एक बजे से सात बजे तक, मध्याह्न में तीन घंटे तथा सायंकाल में तीन घंटे जाप करते हैं।" पृष्ठ १६१, तीर्थाटन, जप का काल, पृष्ठ १६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy