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चारित्र चक्रवर्ती नरनारी बाल-बच्चों के साथ एक एक लालटेन ले भगवान पारसनाथ की जय बोलते हुए पर्वत पर जाने को उद्यत होते थे। लगभग दस कोस की यात्रा भगवान की भक्ति, श्रद्धा तथा आत्मबल के प्रसाद से अशक्त लोग भी प्रसन्नता पूर्वक पैदल करके आते थे। पर्वत पर घना जंगल होने से वहां जंगली जानवरों के निवास को कौन रोक सकता है ? किन्तु प्रभु पारसनाथ का नाम वहाँ गूंजते रहने से कभी भी किसी यात्री को किसी प्रकार का भय नहीं हुआ। भीषण जंगल में जाते हुए ऐसा लगता है मानो नगर के बगीचे में ही जा रहे हों। जिन चिन्तामणि तुल्य पारस प्रभु का नाम दूर देश में जपने वालों का संकट क्षण में दूर होता है तब उन देवाधिदेव के निर्वाण स्थल में धार्मिक भक्तों को कैसे कष्ट हो सकता है ? जैसे जैसे यात्री पर्वत पर चढ़ता जाता है, वैसे वैसे उसके परिणाम भी उज्ज्वल और उन्नत होते जाते हैं।
लाखों आदमियों के कोलाहल युक्त इस भव्यपुरी में रहते हुए भी आचार्य महाराज पूर्ण शांतिभाव से आत्मदर्शन करते थे। मंगलधाम गिरिराज ने उनकी आत्मा में विलक्षण विशुद्धता उत्पन्न कर दी थी। इससे असंख्यात् गुण श्रेणी रूप में कर्मों का क्षय होता जा रहा था।
मंगल प्रभात का आगमन हुआ। प्रभाकर निकला। सामायिक आदि पूर्ण होने के पश्चात आचार्य महाराज वंदना के लिये रवाना हो गये। ये धर्म के सूर्य तभी विहार करते हैं जब गगन मंडल में पौद्गलिक प्रभाकर प्रकाश प्रदानकर ईर्या सिमिति के रक्षण में सहकारी होता है। महाराज भूमि पर दृष्टि डालते हुए जीवों की रक्षा करते पर्वत पर चढ़ रहे थे। गंधर्व और सीता नाला स्याद्वाद दृष्टि के प्रतीक
विशेष अभ्यास और महान शारीरिक शक्ति के कारण वे शीघ्र ही गंधर्व नाले के पास पहुंच गये। कुछ काल के अनंतर सीता नाला मिला। वह जल प्रवाह कहता था - “जिस तरह मेरा प्रवाह बहता हुआ लौटकर नहीं आता इसी प्रकार जगत् के जीवों का जीवन प्रवाह भी है।" ये दोनों निर्झर स्याद्वाद शैल से बहती हुई द्रव्य पर्याय रूप दृष्टि युगल के प्रतीक लगते थे। मार्ग की कंकर-पत्थरों की परवाह न करते हुये महाराज शैलराज के शिखर तक पहुँचते जा रहे थे। ज्ञानधर कूट
कुछ घण्टों के उपरांत भगवान कुन्थुनाथ स्वामी की टोंक (निर्वाण स्थल) आ गई। उस स्थल पर विद्यमान सिद्ध भगवान को प्रणाम करते हुये अपनी ज्ञान दृष्टि के द्वारा वे स्थल के ऊपर सात राजू की ऊंचाई पर सिद्ध शिला पर विराजमान सिद्धत्व को प्राप्त भगवान कुन्थुनाथ आदि विशुद्ध आत्माओं का ध्यान कर रहे थे। चक्रवर्ती, कामदेव तथा तीर्थंकर पदवी धारी शांतिनाथ, कुंथुनाथ तथा अरनाथ प्रसिद्ध हुए हैं। उन महामुनि
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