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________________ इससंस्करणके संदर्भ मैं चारित्र-चक्रवर्ती के इस संस्करण से अनायास युक्त हुआ। आदरणीय श्री सेठी जी (महासभा-अध्यक्ष) से दूरभाष से चर्चा हुई कि चारित्रचक्रवर्ती ग्रंथ को इंदौर में ही और वह भी कोई आशिष जैन से ही छपवाना है। मैंने दूरभाष क्रमांक व पता मांगा, जो कि अनुपलब्ध था॥ कोशिश की। कोशिश करने पर पता चला कि वे और कोई नहीं अपितु महासभा परिक्षालय बोर्ड जिनसे नैतिक शिक्षा आदि मुद्रित करवाता है, वे ही हैं। इनका अपना प्रेस नहीं है, किंतु केनवासिंग अर्थात् जॉब वर्क की नियमावली के आधार पर अन्य प्रेसों से करवाते हैं। उन्होंने अपना बजट बतलाया व कहा कि यदि मेरे कम्प्यूटर में पूर्व प्रकाशित संस्करण की प्रेस कॉपी सुरक्षित होगी, तो आपके उस प्रेस कॉपी के लिये जो रूपये अतिरिक्त लगने हैं, बच जायेंगे, अन्यथा प्रेस कॉपी व मुद्रित होने योग्य तस्वीरों की पॉजिटिव का खर्च अतिरिक्त लगेगा। ये समाचार मैंने आदरणीय सेठी जी व बम्बई में इस कार्य के लिये उत्साहित आदरणीय विद्वान विधानाचार्य श्री भरतजी काला तक पहुँचा दिये व विषय को करीब-करीब भूल सा गया। अचानक एक दिन आदरणीय सेठी जी का फोन आया कि पुस्तक मुद्रित करवानो है, अतः बात करो। मैंने बात की, कॉटेशन लिया व दिल्ली भेज दिया। दिल्ली से आदेश आया कि कार्य उनके सुपुर्द कर दिया जाय, सो कार्य उनके सुपुर्द कर दिया गया। मेरा कार्य यहाँ समाप्त हो गया था और यहाँ से मुझे पृथक हो जाना था। किंतु नहीं हो पाया। कारण बनी चारित्र-चक्रवर्ती की प्रेस-कॉपी॥ मुद्रक को प्रेस-कॉपी के कम्प्यूटर में सुरक्षित न होने संबंधी जो शंका थी, सो सत्य सिद्ध हुई। कम्प्युटर में प्रेस कॉपी सुरक्षित नहीं थी। उसने मुझसे प्रेस-कॉपी व मुद्रित होने वाले फोटो के पोजिटिव मांगे॥ मेरे पास तो कुछ भी नहीं था। इस समस्या की सूचना मैंने मुद्रक की ओर से संभावित अर्थात् अमानित प्रतिपुस्तक व्यय के उल्लेख सहित आदरणीय सेठीजी व बम्बई में श्री भरतजी काला को दे दी। वहाँ से तदनुसार स्वीकृति आई व फोटो आदि के लिये सिवनी श्री अभिनंदन जो दिवाकर से संपर्क करने हेतु कहा गया। मैंने दूरभाष पर संपर्क किया, किंतु उनके पास भो संबंधित सामग्री पर्याप्त नहीं थी। जितनी थी, उतनी उन्होंने भिजवाने की हामी भर दी॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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